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( ४५ ) (५.३) रोगी के कमरे में चाहे जहां न थूकना चाहिये और रोगी के थूकने के लिये खास बरतन रखना चाहिये ।
(५२) रोगी के कमरे में जहां तहां पानी ढोल कर, चीखला' नहीं करना चाहिये।
(५३) मलमूत्र के पात्र रोगी के कमरे में ही पड़े रखना उचितन ही किन्तु आवश्यकता के समय ले आना चाहिये और पीछे बाहर ही रखने चाहिये।
(५४) रोगी के कमरे में घासलेटकी तेज रोशनी नहीं रखनी चाहिये । न विना चिमनी की लालटेन ही रखना चाहियेयह बहुत नुकसान करती है इसका धुंआ रोग बढ़ाने में मदद देता है । मीठे तेल का दीया अच्छा है। तीब्र व्याधि में घृत का दीपक जलाना चाहिये। निरोगावस्था में पथ्य
बीमार हो को पथ्य रखना चाहिये वा पथ्य में रहना चाहिये, यह बात नहीं है । बीमार से भी कहीं अधिक निरोगा वस्था में पथ्य रखने की जरूरत है, कारण बीमार होकर उसका इलाज करने की अपेक्षा बीमार ही नहीं इसका साधन रखना वा प्रयत्न करना अधिक श्रेष्ठ है। यह हरएक को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये । इसी सिद्धान्त को मान्य करके हम घरू चिट्टियों में अपने निजी और प्रेमी लोगों को लिखा करते हैं कि 'शरीर रो जापतोरखावसी, अर्थात् हित
आहार विहार सेवन करसी। हां यह सच है कि बीमार के पथ्य में थोड़ी सी भूल हो जाय वा साधारण कुपथ्य कर लिया जावे तो बड़ा नुकसान होता है परन्तु तन्दुरुस्ती में साधारण कुपथ्य का बुरापरिणाम प्रत्यक्ष में नहीं दीखता, पर रोज २
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