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और भी भारी हो जाती है। एक तो पदार्थ ही भारी है फिर संस्कार से और भी भारी हो जाता है और बहुत देर से पचता है।
(३८) पथ्यके समय तथा वहपच न जावे तब तक मानसिक चिन्ता-विचार कुछ नहीं करना चाहिये।
(३६) शक्ति होतो पथ्यके पश्चात कुछ टहलना चाहिये। परयाद रहे जल्दी २ चलना वा बहुत दूर जाना नुकसान करता है।
(४०) पेशाब-टट्टी की हाजत कभी रोकना नहीं चाहिये । हाजत होने पर टट्टी न जाने से वा पेशाब न करने से अनेक बड़ी २ बीमारिये पैदा हो जाती है वा बढ़ती है।
(४१) सुबह-खास कर ज्वरावस्था में रोगी कुछ पथ्य न ले तो चिन्ता नहीं पर संध्या को कुछ न कुछ देना ज़रूरी है (निरने कालजे नहीं सूवणा चहीजे।)
(४२) स्वच्छ हवा के बराबर ही यदि कोई महत्व की वस्तु है तो वह स्वच्छ और उत्तम अन्न है।
(४३) याद रखना चाहिये कि जो अन्न अच्छे-स्वथ्य अादमी को फायदा पहुंचाता है वह बीमार को और भी बीमार कर देता है, और जो अन्न बीमार को फायदा पहुंचाता है उसको लेने से अच्छा आदमी कमजोर हो जाता है। अतः अवस्थानुसार खान पान लिया जावे।
(४४) बीमारीकी खास हालतमें जिस चीजको रोगीका मन खाने को चाहे वह चीज उसे दे देने से जितनी हानि नहीं होती परन्तु बीमारी के बाद कमजोरी में दे देने से भारी हानि होती है।
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