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( ४२ ) (३१) बीमार को चाहिये कि उसे भूख हो उससे कम खावे । वैद्यक शास्त्र में बताया है कि पेट अन्न से दो पांती और जल से १ पांती भरना चाहिये तथा एक पांती पेट खाली रखना चाहिये। .: (३२) सूखे, बासी, सड़े हुये, अधपके, जले हुए, धुआं लगे भूट तथा वे स्वादे पदार्थ किसी अवस्था में भी न खाये जावें ।
(३३) पथ्य को खूब चबा चबा कर खाना चाहिये जिससे वह जल्दी पच जावे और प्रांतों को मिहनत न हो। जिनकी पाचन शकि कमजोर है उन्हें जरूर चबा २ कर खाना चाहिये। (३४) जो बीमार चलते फिरते होते हैं उन्हें खान पान बहुत नियमलर करना चाहिये तथा भारी चीजें नहीं खानी चाहिये।
(३५) प्यास लगने पर पानी जरूर पीना चाहिये । उपचारकको चाहिये की वह इस में रोक टोक न करे पर ताप, मंदाग्नि आदि में थोड़ा २ पीना चाहिये।
(३६) हर एक को यह समझ रखना चाहिये कि कई वस्तुयें असल में हलकी होती हैं, जल्दी पचती है परन्तु यदि वे बहुत खा ली जायें तो देर में पचती है जैसे चावल, मंग तथा वे संस्कार से भारी भी हो जाती है जैसे बीणज, दालका सीरा, आदि अतः हलकी वस्तुयें भी अधिक न खाई जावें तथा हलकी संस्कार की हुई और भी कम खाई जावें।
(३७) कई वस्तुयें स्वभाव ही से भारी होती हैं जैसे उड़द । इसकी दाल बनाकर खाने पर भी देर से पचती है फिर वह अधिक खा ली जावे तो और भी देर से पचती है। पर वही यदि संस्कार की जावे, उसके लड्डु बनाये जावे तो वह
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