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( ४१ ) (२४) रोगी के प्रौढ़ने बिछाने के विस्तर दूसरे तोसरे दिनधूप में डाल देना चाहिये।
(२५) रोगी के कमरे में हवा अच्छी तरह श्रावे तथा जावे उसको तजबीज रखो जावे, पर रोगी के ऊपर सीधी हवा का झोका न आवे इसके लिये उसका बिछोना कुछ भाड़ में रखा जावे तथा कपड़े खूब ओढ़ाये रखना चाहिये । बारी वारनों पर चिक डाल देना अच्छा रहता है।
(२६) सर्दी लग जाने के डर से हवा रोकने की अपेक्षा रोगीको खूब कपड़ों से गर्म कपड़ों से ओढ़े रखना और हवा की रोक न करना हजार अच्छा है।
(२७) रोगी के कमरे में रोज धूप आवे-प्रकाश हो ऐसा प्रबन्ध रखना चाहिये, तथा ऐसे स्थान में ही बीमार को रखना
चाहिये।
(२८) रोगी के कमरे में धधकते हुये कोयले बारी बारने बंद करके कभी न रखना चाहिये । इस से गेस के कारण बड़ा धुरा परिणाम निकलता है।
(२६) रोगो के पास बहुत भीड़ न की जावे । भीड़ से बचने के लिये रोगो के पास के कमरे में बैठने का प्रबन्ध किया जावे और जो मिलने वाले आवें वे वहां उनके घर वालों से मिलले । तथा जो रोगों के पाल जाना ही चाहे तो उनके लिये घर वाले ऐला प्रबन्ध करें कि एक एक मिलने जाने दिया जावे और जब वह दो चार मिनिट में पीछा आजाबे तब दूसरे को जाने दिया जावे।
(३०) रोगो को घड़ी २ उठने की तकलीफ नहीं देनी चाहिये । सन्निपात खास कर गुजराती रोग में बार २ उठने बैठने से रोगी बहुत बढ़ता है अतः इसकी सम्हाल की जावे।
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