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( ३४ ) की गड़बड़ न हो, भीड़ न हो, मकान स्वच्छ हो, धुआँ आदि न आता हो, दुर्गन्ध कहीं से न आती हो अस्वच्छता न हो, खास विश्वासु आदमियों के अतिरिक्त कोई दूसरा पास न हो ऐसी व्यवस्था रखी जावे । व्यापार वा काम काज सम्बन्धी चर्चा उस समयरोगी के सामने न की जावे । उस समय मीठी तथा मधुर शान्तिदायक बात करनी चाहिये तथा युक्ति से उसकी इच्छाओं को वैद्य के आदेशानुसार फेर कर प्रसन्न बनाये रखें। और किसी विषय में भी उत्तेजित न होने दें।
ऊपर कही बातों को ध्यान में रख कर पथ्य सेवन कराया जावे तो उस पथ्य से पूरा २ लाभ पहुँचता है, जो हज़ार दवानो से भी होना कठिन है । कारण यह सदा सत्य है कि दवा से भी खान पान रोग घटाने में
अधिक मदद देते हैं। : पथ्य देने का ढङ्ग' पथ्य इस ढङ्ग से दिया जावे कि उस पर रोगी को अरुचि वा अभाव (घणा) उत्पन्न न होने पाये। कारण प्रभाव हो जाने पर चाहे जैसा लाभकारी और उत्तम तथा स्वादिष्ट पथ्य भी रोगी को नहीं रुचता है । और बिना रुचि खाया, पथ्य भी नकसान ही करता है। बीमार को सदा एक ही प्रकार का पथ्य स्वाद नहीं लगता, कुछ दिन बाद वह उसे नहीं भाता
और दूसरी चीजो की अोर उसका मन दौड़ा करता है, जो स्वाभाविक ही है। अतः इसका ध्यान रखते हुये समय २ पर वैध की अाशानुसार पथ्य में फेर फार करते रहने का ध्यान रखना चाहिये। पर इसके लिये यह नहीं कि जो चाहा पथ्य
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