________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- (७) रोगी के पथ्य में सीजते घत मिला देने वा 'मौन' डालने की कुप्रथा का उपयोग कभी न करना चाहिये । खीचड़ी थूली, दलिया रोटी आदि में घी मिला कर देने से वह देर में पचती है। कभी २ उससे कई उपद्रव हो जाते हैं, सूजन, पाण्डु, उदरविकार, मंदाग्नि, ज्वर, खास, श्वास, अतिसार
आदि हो जाते हैं वा बढ़ जाते हैं। पर को इसका पता भी नहीं लगता।
(८) रोगी की थाली में खुराक एकदम बहुत सी न ले आना चाहिये, क्योंकि वह अधिक खुराक देख कर डर जाता है, उसे अरुचि उत्पन्न हो जाती है, वह अपनी इच्छामुजब खुराक भी नहीं ले पाता अतः प्रारम्भ में थोड़ा पथ्य लाना चाहिये और रोगी फिर इच्छा करे तो दूसरी बार और ले आना चाहिये पर आलस्यवश, दूसरी बार फिर लाने की तकलीफ से बचने के लिये एकवार में ही अधिक ले आना अच्छा नहीं।
(E) रोगी को पथ्य रसोई घर में या उसके निकट ही नहीं देना चाहिये क्योंकि वह वहां अनेक प्रकार के व्यञ्जन बने देख कर उनके खाने की इच्छा प्रगट करता है, उसके लिये कोशिश करता है, हठ करता है और मन को वश में न रख कर खा भी लेता है अथवा लाचार होकर दे देना भी पड़ता है। अतः उसे याद में वा दृष्टि में कुपथ्य वाली वस्तुयें न श्राने देनी चाहिये और इसका खास प्रबन्ध रखना चाहिये।
(१०) रोगी जहां रहता है वहां कोई खाद्य पदार्थ नहीं रखना चाहिये और न वहां कोई कुछ खावे वा खाता हुआ जावे।
(११) बीमार को मालूम न होने देना चाहिये कि घर में क्या २ वस्तुयें बनी हैं वा बनाई गई है।
For Private And Personal Use Only