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( ३७ ) उठते ही, थकावट से पथ्य लेने की हिम्मत नहीं होती, उसका श्वास फूल जाता है अतः कुछ देर ठहर कर-बीसाई खा लेने पर-पथ्य देना शुरू करना चाहिये । बीमार को पलवाड़ा (करवट) फेरले में भी कभो २ बहुत परिश्रम होता है, वह उस समय पूरा बोल तक ह सकता। अस्तु बीमार को बैठाके पर कुछ देर तक घोसामी (rest) खाने देना चाहिये । प्रास भी धोरे २ दिया जावे जल्दी २ लेने से वह घबड़ा जाता है, किया हुआ निकल जाता है। पथ्य सम्बन्धी कुछ नोट
(१) रोगो को पथ्य हरबार ताजा दिया जावे। सुबह का श्याम और श्याम का सुबह न दिया जावे । ४ घण्टे से पहिले का तैयार किया पथ्य न दिया जावे। रोटो, साग, श्रादि ठंडे, बासी, पोछे गर्म किये हुये न दिये जावें । ठण्डे, बासी पथ्य में स्वाद नहीं रहता है, पौष्टिक रस निकल जाता है, कुछ विकार भी पैदा हो जाता है, पचता भी देर से है अतः रोगी को जब ज़रूरत हो तभो ताजा पथ्य तैयार करके दिया जावे।।
(२) रोगो को पथ्य हमेशा हलका, जल्दी पचने वाला और ताकत देने वाला देना चाहिये।
(३) रोगी को पथ्य कभी उसकी रुचि से अधिक न दिया जावे।
(४) रोगी को पथ्य अधिक लेने के लिये उस पर दबाव वा सखी न की जावे।
(५) रोगी के पथ्य में श्लेष्मकारी वस्तुयें न दी जावें।
(६) घोमारों में घत, खांड, मिठाई, मैदे की चीजें, श्रादि सब हानि करते हैं । जब रोग दूर हो जाय तब इनका सेवन कभी २ थोड़ा २ जरूरत हो तो रुचि के अनुसार करना चाहिये।
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