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( २१ ) (४४) कुपथ्य थोड़ा सा भो-बहुत हानिकारक होता है।
(४५) यदि बीमारी में तुम्हारा मन अनेक कुपथ्य कारक वस्तुओं को ओर जाता हो तो उन सब बस्तुओं को याददाश्त डायरी में कर रखो और श्राराम होने पर उन्हें सेवन कर अपनी इच्छा को पूर्ण कर लो।
(४६ ) जो पथ्य कुपथ्य के सम्बन्ध में ज्ञान नहीं रखते हैं, उनकी सम्मति पर इल विषय में कभी विश्वास नहीं करना चाहिये।
(४७) मिलने जुलने वाले घरूपा बतलाने के लिये प्रायः कुपथ्य करने में भी सहायता दे दिया करते हैं । इस विषय में बीमार को स्वयं सावधान रहना उचित है।
(४८) त्रियां पथ्य कुपथ्य को ओर बहुत कम ध्यान देती है अतः उनके द्वारा कुपथ्य हो जाने का बड़ा भय है, इससे सावधानी रखनी चाहिये।
(४६) स्त्रियां कभी कभी अविचार से ज़बरदस्ती भी कुपथ्य करा बैठती हैं।
(५०) जिस खान पान वा रहन सहन से प्रारोग्यता प्राप्त करने में देर लगती हो वा उससे वह रोग बढ़ता हो उसी को कुपथ्य कहते हैं।
(५१) बिना इच्छा के ज़बरदस्ती कुछ खा लेना भी कुपथ्यही समझना चाहिये।
(५२ ) पथ्य रखनेसे आजतक कोई नहीं मरा पर कुपश्य से प्रति दिन मृत्यु संख्या बढ़ती हुई देखरहे हैं।
(५३) घर की बुढ़ियां छिपाकर भी कुपथ्य करा देती हैं। पर यदि कभी ऐसी भूल होजाय तो चिकित्सक को फौरन खबर कर देने में बीमार का भला है।
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