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पाहा
( २० ) बीमार होकर पड़ना न पड़े तो पथ्य रखने का अभ्यास करना चाहिये।
(३४) कुपथ्य से डरने वाले खानदानों से लेश, दुःख, सन्ताप, रोग प्रादि दूर ही रहते हैं।
(३) पथ्य सम्बन्धी ज्ञान वैद्यों और डाकृरों के लिये ही नहीं किन्तु सर्व साधारण के लिये भी उतना ही काम का समझा गया है।
(३६) आदेश मिलने पर पथ्य के सम्बन्ध में कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
(३७) कोई हमें पथ्य के रखने के लिये कहे वा न कहे पर हमें तो चाहिये कि अपना लाभ समझ कर सदा पथ्य से ही रहा करें।
(३८) बीमार को पथ्य के सम्बन्ध में चिकित्सक की अामा का पालन यथोक करना चाहिये।
(३६) पथ्य में बिना चिकित्सक की सम्मति लिये अपनी अल नहीं दौड़ानी चाहिये।
(४० ) कुपथ्य न करने के लिये मन को सदा वश में रखना चाहिये।
(४१) बीमारी में कुपथ्य को ओर मन बहुत दौड़ता है पर बिना चिकित्सक की आज्ञा के मुंह में कुछ भी न डालना चाहिये।
(४२) बीमारी में मुंह वश में रखना, रोग के जीत लेने का एक बड़ा साधन है।।
(४३) मन के वशीभूत होकर कुपथ्य कारक वस्तु को थोड़ी सी खाने की इच्छा बता कर वैद्य से उसकी आज्ञा प्राप्त करने का बारबार प्रयत्न करना अपने ही लिये हानिकारक
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