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वैध को घुमा फिरा कर 'हां' भराने के लिये कोई युक्तिवाउद्योग न किया जावे । न उस पर विशेष दबाव ही डाला जावे। 'थोड़ा हो लूंगा,-मैं ज्यादा तो खाता ही नहीं, मुझे भाता ही नहीं, मुझसे खाया हो नहीं जाता~का विश्वास उत्पन्न करके कभी श्राज्ञा प्राप्त न की जावे, किन्तु वैद्यजी को अपनी स्वतंत्र राय देने का अवसर दिया जावे। यदि रोगी अपनी कुछ इच्छा प्रकाशित करे तो उसकी सूचना वैद्य जी को अवश्य कर दी जावे पर रोगी के दबाव में श्राकर ज़बरदस्ती कोई श्राक्षा प्राप्त करने की कोशिश न की जावे ।
अवश्य हो असाध्य रोगों में वैध एवं रोगी दोनों पथ्य के लिये विशेष सावधानी रखते हैं । और दवा के समान ही पथ्य को भी महत्व देते हैं । व्यवस्था पत्रके साथ ही यह बतला दिया जाता है कि अमुक प्रकार का खान पान दिया जावे और हवा आदि का प्रबन्ध रखा जावे। मृत्यु के भय से डर कर सन्निपात आदि अवस्था में पथ्य का ख्याल पूरा २ रखा जाता है, फिर भी कभी २ लोग मन चाहा खिला पिला कर रोगो को बिगाड़ देने में नहीं चूकते हैं और अपनी भूल के लिये पश्चाताप करने का अवसर उपस्थित कर देते हैं अतः वैधों को चाहिये कि वे केवल सलाह दे देने के भरोसे पर ही निश्चिन्त न हो बैठे किन्तु उनके कथनानुसार कार्य किया भी गया है वा नहीं उसकी देख रेख भी रखें।
पथ्य के मूल द्रव्य-पदार्थ-कैसे हो ? पथ्य जिन वस्तुओं का दिया जावे वे बढ़िया और ऊँची कोटि-क्वालीटी ( Superior quality ) की हो यह पहिले कहा जा चुका है। धान्य आदि सब अच्छे और
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