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( २४ ) बिनापि भेषजै व्याधि पथ्या देव निवत्तते। नतु पथ्य विहीनस्य भैषजानां शतैरपि ॥
बंगसेन, भावप्रकाश । आलोक्य वैद्य तन्त्राणि यत्नादेष निबध्यते। व्याधितानां चिकित्सा, पथ्यापथ्य विनिश्चयः ॥ निदानौषधपथ्यानि त्रीणि यत्नेन चिन्तयेत् । तेनैव रोगाः शोर्यन्ते शुष्के नीर इवाकुराः ॥ रुतु सर्वास्वपथ्यानि यथास्वं परिवर्जयेत् । तास्त्वपथ्यै विवर्धन्ते दोह दैरिव वीरुधः ॥ विनाऽपि भेषजै याधिः पथ्यादेव विलीयते। नतु पथ्य विहीनस्य भेषजानां शतैरपि ॥ दोषान्दृष्यान्देशकालौ सात्म्यं सत्त्वं बलं वयः । विकृति भेषजं वह्निमाहारं च विशेषतः ।। निरीक्ष्य मातेमान्वैधश्चिकित्सां कुर्तुमुवतः। पथ्यानि योजयेन्नित्यं यथास्वं सर्वरोगिषु ॥
योग रत्नाकर । नित्यं हिता हार विहार सेवो समीक्ष्यकारी विषयेष्वसतः । दातासमः सत्यपरः क्षमावा नाप्तोपसेवो च भवत्यरोगः ॥
वागभट। पथ्य सम्बन्धी आनने योग्य कुछ बातें।
पथ्य में रहना सदा लाभकारी है, आरोग्यावस्था से भी कहीं अधिक बीमारी में इससे लाभ पहुंचता है। यह बीमारों का प्राण है, तन्दुरुस्ती का जीवन है, देहका रक्षक है, शक्ति देने वाला है, क्षीण हुए देह को फिर से हृष्ट पुष्ट बनाता है, चिकित्सा की सफलता भी बहुत कुछ इसी पर अवलंबित है अतः बीमार की सेवा सुश्रुषा करने वालों को चाहिये कि वे
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