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( २२ ) (५४) के विना पूछे भी जो कुपथ्य हो जानेकी बात कहदेते हैं वे जल्दी नीरोगता पाते हैं।
(५५) कुपथ्य करलेनेसे भी कहीं अधिक भूल उसे छिपाना है।
(५६) कुपथ्य हो जानेकी खबर देने में कभी नहीं शरमाना चाहिये।
(५७ ) कुपथ्यको छिपाने वाले दुःख पाते हैं।
(५८) नेद्य को कुपथ्य हो जाने की सूचना जितनी जल्दी मिलेगी उतनाही बीमारका कल्याण होगा।
(8) जो लोग कुपथ्य हो जाने की बात प्रकट करदिया करते हैं उनका सुधार जल्दी किया जा सकता है।
(६०) कुपथ्य छिपा नहीं रहता है, अतः हमें उसे छिपाना चाहिये भी नहीं।।
(६१) बार बार कुपथ्य करनेवाले बीमारसे चिकित्सक की सहानुभूति घट जाती है।
(६२) जिसकी चिकित्सा हो उसी के आदेशानुसार पथ्य रखना लाभकारी है।
(६३) किस रोगमें कौन पथ्य और कौन अपथ्य है इसके निर्णयमें चिकित्सक की बातही माननीय है।
(६४) पथ्यके सम्बन्धमें चिकित्सकने जो श्राज्ञा दी हो उसका अक्षरशः पालन करना चाहिये।
(६५) कभी कभी चिकित्सक की स्पष्ट आज्ञा मिलजाने परभी मूर्खतावश घरकी स्त्रियां संशयमें उनका पालन नहीं करती हैं। पर इस प्रकार करना हानिकारक है।
(६६) चिकित्सक की आज्ञानुसार न खानेसे कोई मरता नहीं है परन्तु अधिक खालेनेसे अजीणका अनुभव सब किसीने अनेकों बार किया होगा।
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