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( १२ ) पथ्य के सम्बन्ध में बुरे भाव फैल गये हैं__ अनपढ़ वैद्यों के अविचार और अनुचित कृत्यों से पथ्य के सम्बन्ध में जो बुरे भाव हम लोगों में फैल गये हैं, उनसे भी कहीं अधिक दोष और हानि स्वास्थ्य के उत्तम विचारों की कमी और मूर्खता के कारण हम सर्वसाधारण की इस
ओर उपेक्षा की दृष्टि रखना समझनी चाहिये। आज जन साधारण यह बिलकुल भूल बैठा है कि पथ्य क्या होता है और कैसे करना चाहिये । इसके लिये सहृदयों को अफसोस तो यों हो रहा है, कि जिस विद्या का पहिले पहिल यहां प्रादुर्भाव हुआ है, भारत में जहां इतनी जांच पड़ताल कर खान पान और रहन सहन के लिये बारीको ढूंढ़ निकाली गयी है, जहां के लोग एक समय सब एक दम इसी के भक्त थे, वहां अाज पथ्य रखने वाले और उसकी व्यवस्था देने वाले दोनों को ही यह शोचनीय दशा हो गई है, कि जिससे आयुर्वेद की जो हानि होती है, वह तो एक ओर रही वरन् स्वयं उनको भी अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। फिर भी इसके सुधार की ओर ध्यान न पहुंचाना आश्चर्य से बढ़कर क्या कहा जा सकता है ? पथ्य के प्रबन्धक
चिकित्सा संसार में प्रविष्ट रहते हम अपने अधिकार और ज्ञान का यह कह कर अनुचित उपयोग नहीं कर रहे हैं कि हम लोग सचमुच पथ्य रखना भूल गये हैं। अाज पथ्य की वह आदर्श प्रणाली न रहने से ही सैकड़े ५० की मृत्यु तो केवल इसकी गैर व्यवस्था से ही होती है। अनेक धनाढयों के यहां भी इसी कुव्यवस्था के कारण भूखों मरते प्राणान्त हो जाते हैं; और ठीक इससे उल्टा निम्न श्रेणी के लोगों के
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