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पूरा स्वास्थ्य प्राप्त करने में देर लगती है और बीमारी के दिन बड़ो बेचैनीसे निकालने को उसे लाचार होना पड़ता है। यही एक मुख्य कारण है, कि जिससे सारे देश में पथ्य का आतङ्क छोटे और बड़ों में अधिक से अधिक बढ़ता जा रहा है और इससे वैधों की चिकित्सा भी घट रही है। अब लोगों का यह साधारण विचार होरहा है कि वैद्यों में पथ्य की कठिनाई पहले दरजे की होती है और बिना कोई खास कारण उपस्थित हुए वे अब वैधो से चिकित्सा करानेमें प्रायः घबड़ाते हैं।
भयानक पथ्य
एक और भी कारण है कि अनेक "महावैद्य" अपने उपचारों से भी अश्रद्धा उत्पन्न कर रहे हैं। इस श्रेणी के लोग गिन्ती के कुछ निर्दिष्ट Certain प्रयोगों से जगत् भर की सम्पूर्ण बीमारियों के मिटा देने में अपने को प्रवीण Expert समझकर प्रत्येक रोग के लिये "मुह आने वाली" दवाइयों-पारा, रसकपूर, हिंगुल, भिलावां, हरताल, वा ताँवा आदि का उपयोग कराते हैं और अपना वा औषधका महत्व और गोप्यत्व अधिक बढ़ाने के लिये तथा अपने पथ्य सम्बन्धी ज्ञान के घाटे से वे सेवनकर्ता तथा उसके कुटुम्बियो को इतना भय में डाल देते हैं मेरी बतायी अमुक चीजों के सिवाय यदि कुछ भी मुह में डाल लिया तो अवस्था बिगड़ कर ऐसी और जैसी हो जावेगी और फिर कुछ भी उपाय न लगेगा। यह इन्हीं लोगों का सिद्धान्त वाक्य है कि “पथ्यं तु कठिनं वदेत्” और मनुष्य जीवन को बरबाद करने वाली औषधियों के लिये शायद इतनी कठि. नाई कुछ काम की होती भी होगी पर वे तो एक बार
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