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राजनैतिक और सैनिक महत्व
"महाराणा श्री राजसिंह मेवाड़ के दस हजार गाँवों के सरदार, मन्त्री और पटेलों को भाज्ञा देता है, सब अपने २ पद के अनुसार पढ़ें ।
१ - प्राचीन काल से जैनियों के मन्दिरों और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है, इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा में जीव-बध न करे । यह उनका पुराना हक है ।
२- जो जीव नर हो या मादा, वध होने के अभिप्राय से इनके स्थान से गुजरता है वह अमर हो
जाता है।
२३ - राजद्रोही, लुटेरे और काराग्रह से भागे हुए महा अपराधी को भी जो जैनियों के उपासरे में शरण ग्रहण कर लेगा, उसको राज कर्मचारी नहीं पकड़ेंगे ।
४ - फसल में कूंची (मुट्ठी ), कराना की मुट्ठी, दान की हुई भूमि, धरती और अनेक नगरों में उनके बनाए हुए उपासरे कायम रहेंगे ।
५ – यह फरमान यति मान की प्रार्थना पर जारी किया गया है, जिसको १५ बीघे धान की भूमि के और २५ बीघे मालेटी के दान किये गये हैं। नीमच और निम्बाहेड़ा के प्रत्येक परगने में भी हरएक जती को इतनी ही पृथ्वी दी गई है। अर्थात् तीनों परगनों में धान के कुल ४५ बीघे और मालेटी के ७५ बीघे ।
इस फरमान को देखते ही पृथ्वी नाप दी जाय और दे दी जाय और कोई मनुष्य जतियों को दुःख नहीं दे, बल्कि उनके हकों की रक्षा करे । उस मनुष्य को धिक्कार है जो उनके हकों को उलंघन करता है। हिन्दू को गौ और मुसलमान को सुवर और मुदारी कसम 1 संवत् १७४९ महा सुवी ५ ई० सं० १६९३ । शाह दयाल मन्त्री ।
इन्हीं दयालशाहजी ने राजसमंद के पास वाली पहाड़ी पर एक किलेनुमा श्रीआदिनाथजी का भव्य मन्दिर बनवाया जिसका विवरण धार्मिक अध्याय में दिया जायगा ।
मेहता अगरचन्दजी
जिस समय महाराणा अरिसिंहजी और महाराणा हमीरसिंहजी मेवाड़ के राजनैतिक गगन में अवतीर्ण हुए थे, उस समय भारतवर्ष का राजनैतिक वातावरण धुआँधार हो रहा था। सारे देश के अन्तगंत जिसकी लाठी उसकी भैंस (Might is right) वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी । समस्त भारत की राष्ट्रीयता धूलधानी हो रही थी; सब से बड़े अफसोस की बात यह थी कि उस सारे उपद्रव मय वायुमण्डल के अन्दर उच्च नैतिकता का एक जर्रा भी बाकी न रहा था। जातियाँ सब कुछ खो देती हैं, उनकी
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