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राजनैतिक और सैनिक महत्वं
सिंह का कई वर्षों तक खर्चा चलाता रहा। मरने पर उसके बेटे जीवाशाह को महाराणा अमरसिंह ने प्रधान का पद दे दिया । " इन्हीं भामाशाह के भाई ताराचन्द हुए जो हल्दीघाटी के युद्ध तथा और भी कई युद्धों में बड़ी वीरता के साथ लड़े। भामाशाह के पुत्र जीवाशाह और उनके पुत्र अक्षयराज महाराणा अमरसिंह और कर्णसिंह के प्रधान रहे ।
महाराणा राजसिंह और संघवी दयालदास
मेवाड़ के इतिहास में संघवी दयालदास का स्थान राजनैतिक और सैनिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । दयालशाह का समय, वह समय था, जब रखगर्भा भारत वसुन्धरा की छाती परं औरगंजेब के अमानुषिक अत्याचारों का तांडव नृत्य हो रहा था। उसकी धर्मान्धता से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था । अबलाओं, मासूमों और बेकसों पर दिन-दहाड़े अत्याचार होते थे, धार्मिक मन्दिर जमींदोज़ किये जाते थे, मस्तक पर लगा हुआ तिलक जबान से चाट लिया जाता था और चोटी बलपूर्वक मस्तक से जुदा कर दी जाती थी । इस अत्याचार को और भी प्रबल करने के लिये उसने हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाने का विचार किया, जिससे सारे देश का रहा सहा असंतोष और भी प्रज्वकित हो उठा। ऐसे संकट के समय में मेवाड़ के राणा राजसिंह ने औरंगजेब को एक पत्र लिखा, जिसमें ऐसा अमानुषिक का करने की सलाह दी । । इससे औरंगजेब का क्रोध और भी भड़क उठा और उसने अपनी विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उसकी सेना मे वि० सं० १७३६ के भाद्रपद शुक्ला ८ के दिन देहली से कूँच किया। उस समय महाराणा राजसिंह के प्रधान मंत्री संघवी दयालदास थे। इस युद्ध में महाराणा राजसिंह ने जिस रण कुशलता और चतुराई के साथ औरंगजेब की विशाल सेना को पराजय दी, वह इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यहाँ यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि इस सारी रण-कुशलता और चतुराई के अंदर मंत्री दयालदास कंधे बकंधे महाराणा राजसिंह के साथ में थे। महाराणा राजसिंह संघवी दयालदास की सेवाओं से बड़े प्रसन्न हुए और औरंगजेब के द्वारा सेवाद पर की गई चढ़ाई का बदला लेने के लिये संघवी दयालदास को बहुत सी सेना के साथ मालवे पर आक्रमण करने के लिये भेजा । वीर दयाल - दास ने किस बहादुरी और तेजस्विता के साथ उसका बदला लिया इसका वर्णन प्रकार किया है:
कर्नल जेम्स टॉड ने इस
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" राणाजी के दयालदास नामक एक अत्यन्त साहसी और कार्य्यं चतुर दीवान थे; मुगलों से बदला लेने की प्यास उनके हृदय में सर्वदा प्रज्वलित रहती थी उन्होंने शीघ्र चलनेवाली घुड़सवार सेना को साथ लेकर नर्मदा और बेतवा नदी तक फैले हुए मालवा राज्य को लूट लिया, उनकी प्रचण्ड भुजाओं के बल के सामने
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