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ओसवाल जाति का इतिहास
आरम्भ कर दिया। आपने धीरे २ शत्रुओं की शक्ति को चूर २ करके सारे जिले के अन्तर्गत शांन्ति स्थापित की। इसके कुछ दिनों पश्चात् आप खवास गुलाबजी को मांडलगढ़ का शासक (Governor ) नियुक्त कर उदयपुर दरवार में आ दाखिल हुए।
मेहता अगरचंदजी ने उदयपुर दरबार में पुनः काम करना आरम्भ कर दिया । यह हम ऊपर लिख चुके हैं कि आप बड़े कुशल राजनीतिज्ञ थे। इसी समय रतनसिंह ने राज्य प्राप्ति की लालसा से कई सरदारों को मिलाकर एक बड़े षड्यंत्र की रचना की और उसमें मरहठा सरदार सिंधिया को भी आमन्त्रित किया। मेहता भगरचन्दजी निकट भविष्य में आनेवाली इस भापत्ति को तुरंत ताड़ गये तथा रावत पहाड़सिंहजी एवं शाहपुरा नरेश राजाधिराज उम्मेदसिंहजी के साथ इस षड्यंत्र की सब शक्तियों को नष्ट करने के लिये आक्रमण की तयारी करने लगे। लेकिन रतनसिंह अपने पड्यंत्र को बहुत मजबूत बना सुका था और इनके युद्ध के लिये तयार होने के पहले पहले अपनी पूरी २ शक्ति संचित कर चुका था। उधर मरहठा सरदार सिंधिया भी इनकी मदद पर भा पहुंचा । फिर क्या था, अत्यन्त वीरता पूर्वक लड़ने पर भी महाराणा की फौज हार गई और रावत पहाड़सिंहजी तथा शाहपुराधीश राजाधिराज उम्मेदसिंहजी वीरतासे लड़ते २ काम आये । उसी समय मेहता भगरचन्दजी भी बड़ी धीरता से लड़ते हुए शत्रु दल द्वारा पकड़े गये । इस प्रकार इस वीरवर योद्धा के पकड़े जाने से विरोधी पक्ष को बड़ी प्रसन्नता हुई । उस समय भी मेहता अगरचन्दजी ने अपूर्व स्वामिभक्ति का परिचय दिया। विरोधी दल वालों ने आपको, इस शर्त पर कि आप रतनसिंह को महाराणा मान लें, छोड़ना स्वीकार किया परन्तु आपने निर्भीकता से इसके लिये इन्कार कर दिया। जब ये बातें महाराणा को मालूम हुई तो वे बड़े दुखी हुए और उन्होंने मेहता अगरचन्दजी को इस आशय का एक रुक्का लिखकर भेजा कि तू मेरा श्यामधर्मी नौकर है और उज्जैन के झगदे के बिगड़ने के कारण तुझे जिन २ कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है उनको जानकार मुझे बड़ी अमूझणी आ रही हैं। अब तू शत्रु के पंजे से जैसा वे कहलार्वे वैसा कह कर तुरंत चले आना। हमारा तुम पर पूरा विश्वास है । उस रुक्के की नकल इस प्रकार है
"स्वस्ती श्री भाई अगरा जोग अपरंची उजीण रो झगड़ो बिगड़ गयो जी री म्हारे पूरी अमूझणी है तथा यां जसा सपूत चाकर मारे है सो या अमूझणी भी श्रीएकलिंगजी मेटेगा परन्तु तू पकड़ाय गयो और गनीम था नकासुं जबान केवाय छोड़े जणी हेतु तू चारे नहीं या थाहें नहीं पावे म्हारे तो आंधा लकड़ी तू है थांथी ही राज करा हां अब वे केवावे जो कहेन जीब बचा हजूर हाजर होजे अणी करवा में थारा साम धरमी में फरक जाणा तो श्रीएकलिंगजी
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