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पोसवाल जाति का इतिहास
कोई भी खड़ा नहीं रह सकता था, सारंगपुर, देवास, सरोज, मांडू, उजैन और चन्देरी इन सबै नगरों को इन्होंने अपने बाहु-बल से जीत लिया, विजयी दयालदास ने इन नगरों को लूटकर वहाँ पर जितनी यवन सेना थी, उसमें से बहुतसों को मार डाला; इस प्रकार बहुत से नगर और गाँव इनके हाथ से उजाड़े गये। इनके भय से नगर-निवासी यवन इतने म्याकुल हो गये थे, कि किसी को भी अपने बन्धु बाँधव के प्रति प्रेम न रहा, अधिक क्या कहें, वे लोग अपनी प्यारी स्त्री तथा पुत्रों को भी छोड़ २ कर अपनी २ रक्षा के लिये भागने लगे, जिन सम्पूर्ण सामग्रियों के ले जाने का कोई उपाय उनको दृष्टि न आया अन्त में उनमें अग्नि लगाकर चले गये। अत्याचारी औरंगजेब हृदय में पत्थर को बाँधकर निराश्रय राजपूतों के ऊपर पशुओं के समान आचरण करता था, आज उन लोगों ने ऐसे सुअवसर को पाकर उस दुष्ट को उचित प्रतिफल देने में कुछ भी कसर नहीं की, संघवी दयालदास ने हिन्दू-धर्म से बैर करने वाले बादशाह के धर्म से भी पल्टा लिया। काजियों के हाथ पैरों को बांधकर उनकी दाढ़ी मूंछों को मुंडा दिया और उनके कुरानों को कुए में फेंक दिया। दयालदास का हृदय इतना कठोर हो गया था कि, उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी भी मुसलमान को क्षमा नहीं किया। तथा मुसलमानों के राज्य को एक बार मरुभूमि के समान कर दिया, इस प्रकार देशों को लूटने और पीड़ित करने से जो विपुल धन उन्होंने इकट्ठा किया, वह अपने स्वामी के धनागार में दे दिया और अपने देश की अनेक प्रकार से वृद्धि की थी।"
____ विजय के उत्साह से उत्साहित होकर तेजस्वी दयालदास ने राजकुमार जयसिंह के साथ मिलकर चित्तौड़ के अत्यन्त ही निकट बादशाह के पुत्र अजीम के साथ भयंकर युद्ध करना आरम्भ किया । इस भयंकर युद्ध में राठोड़ और खीची धीरों की सहायता से वीरवर दयालदास ने अजीम की सेना को परास्त कर दिया, पराजित अजीम प्राण बचाने के लिये रण थंभोर को भागा, परन्तु इस मगर में थाने के पहले ही उसकी बहुत हानि हो चुकी थी, कारण कि विजयी राजपूतों ने उसका पीछा करके उसकी बहुत सी सेना को मार डाला । जिस अजीम ने एक वर्ष पूर्व चित्तौड़ नगरी का स्वामी बन अकस्मात् उसको अपने हाथ में कर लिया था, आज उसको उसका उचित फल दिया गया" ।*
वीर दयालदास ने इन युद्धों के सिवा और भी कितने ही युद्ध किये। उनकी बहादुरी और राजनीति कुशलता से महाराणा राजसिंह बड़े प्रसन्न रहते थे। इन सिंघवी दयालदास के हस्ताक्षरों का राणा राजसिंह का एक आज्ञापन कर्नल टाड ने अंग्रेजी राजस्थान के परिशिष्ठ नं. ५ पृष्ट ६९७ में अंकित किया है, जिसका मतलब इस प्रकार है:
.टाड राजस्थान द्वितीय खण्ड अध्याय बारहवां पृष्ठ ३६७.३६८ ।