________________
' . पहला सौ। [९ चित्रविचित्र लोंके किरणकलापकी मालाओंके पड़नेसे उनमें इन्द्र धनुष बन जाते हैं ॥३०॥ वहांकी गलियोंमें इधर उधर निरंतर घुमते रहनेवाले. लोगोंके हारोंके मोती परस्पर संघर्षण हो जानेसे एंट कर गलियोंमें विखर जाते हैं। जिससे मालूम होता है कि इन गलियोंमें तारागणोंके टुकड़े विखर गये हैं ॥३१॥ वहांकी वापिकाएं किनारोंपर लगे हुए प्रकाशमान रत्नोंकी किरणोंसे रात्रिमें भी दिनकी शोमा बना देती हैं। मालम होता है कि चक्रवियोंके वियोगननित शोकको दूर करनेकी इच्छासे ही वे इस कामको कर रही हैं ॥३२॥ वहांपर चन्द्रकान्त मणिके बने हुए मकानोंकी बाहरकी भूमिमेंसे चन्द्रमाका उदय होनेपर, जो जल निकलता है उसके ग्रहण करनेसे मेवोंका शरीर घन सघन हो जाता है अतएव व यहां पर यथार्थताको प्राप्त हो जाते हैं ॥३शा उस नगरीमें रात्रिके समय बरोंकी वावड़ियों में समस्त दिशाओंको मुगन्धित करनेवाले कमलोंकी कणिकाओंपर जो भ्रमर उड़ते हैं, वे ऐसे मालूम पड़ते हैं मानों चन्द्रमाके उदयसे अंधकारके खंड झड़ रहे हैं ॥३४॥ सायंकाल के समय वहांकी मणिनिर्मित भूमिपर झरोखोम होकर पड़ती हुई सुधाफेनके समान सफेद-स्वच्छ चांदनीको विल्लीका बच्चा दुध समझ प्रसन्न होकर चाटने लगता है ॥३५॥ वहाँके वनोंमें लता गृहोंके भीतर जो पति पत्नी विलास करते हैं उनके उस विलास सौंदर्यके देखनेकी इच्छासे ही मानों सब ऋतुओं में फूलनेवाले और सब नातिके सुन्दर.२ वृक्ष उन वनोंमें सदा निवास करते हैं ॥३६॥
. इस नगरके राजाका नाम नदिवर्धन था । उसकी विभूति * इन्द्र के समान थी, और वृत्ति विश्वके लोगोंको कल्याणकारिणी थी।