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विषय
विषय अनन्त सुख की उत्पत्ति का कारण तथा उसकी सूक्ष्म कृष्टिकरण का प्रमाण, प्रथम समय मे कृष्टि विशेषताए
१८६ | द्वितीयादि समयो मे असख्यात गुण प्रदेशो का क्षायिक सम्यक्त्व तथा उत्कृष्ट चारित्र की उत्पत्ति
अपकर्षण मवीन कृष्टि निर्माण तथा कृष्टि प्रमाण का कारण
का निर्देश
२०८ असाता वेदनीय के उदय से केवली भगवान के
योग के अपूर्व स्पर्षक तथा सूक्ष्मकृष्टि प्रादि के क्षुधादि-परीषह पाये जाते हैं तथा उनके पाहारादिक्रिया होती है ऐसी असत् मान्यता का परिहार १८७
सम्बन्ध मे कथन
२१० इन्द्रिय सुख की परिभाषा
१८७ कृष्टिकरण के अनन्तर समय मे सकल स्पर्वको का केवली साता असाता जन्य सुख-दुःख के प्रभाव
कृष्टिरूप परिणमन, योग कृष्टियो का हीन क्रम का कारण
१८८ से वेदन
२१० केवली के साता वेदनीयका एक समय स्थिति वाला सयोगी जिनके तृतीय शुक्ल ध्यान का प्ररूपण तथा उदयरूप स्थिति वन्ध होता है इसका निर्देश १८८ | अन्त मे नाश को प्राप्त योग कृष्टि
२१२ सयोग केवली के प्रति समय होने वाले नोकर्माहार।
अघातिया कर्मों का चरम स्थिति काण्डक तथा तथा उसकी स्थिति का कथन
चरम समय मे होने वाली समस्थिति का कथन २१३ समुद्घातगत केवली के तीन समयो तक नोकर्म
अयोगी जिन व उनके ध्यान
२१५ याहार का प्रभाव पाया जाता है पश्चिम स्कंघद्वार कथन के अन्तर्गत केवली समुद्
प्रयोगी के शुक्ल ध्यान द्वारा नाशित प्रकृतिया घात के निर्देश पूर्वक केवली समूद्घात के अन्तर्गत
अष्टम पृथ्वी का वर्णन
२१७ श्रावजितकरण तथा इसके पूर्व एव वाद मे होने
प्रथम एव द्वितीय शुक्ल ध्यान का अधिकार
२१८ वाले क्रिया विशेषो का कथन
१९६ | सिद्धो से रत्नत्रयकी शुद्धि व समाधि की याचना २२६ योग निरोध का प्ररूपण
२.३ सूक्ष्म योग, अपूर्वस्पर्धक सूजन, प्रति समय असख्यात- । | क्षपणाधिकार चूलिकागुणा अपकर्पण, किन्तु अपूर्वस्पर्धक असख्यातगुणा दर्शनमोह और चारित्रमोह कर्म प्रकृतियो को हीन क्रम से सूजन तथा अपूर्वस्पर्धक के प्रमाण
क्षपणाविधि पूर्व मे कही गई उसका उपसहार करते का कथन २०६ । हुए चूलिका रूप व्याख्यान
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