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प्रस्तावना अग्गेणीयपुवाओ, तस्स वि पंचमवत्थूउ, तस्स वि वीसपाहुड परिमाणस्स कम्मपगडिणामधेज्ज़ चउत्थं पाहुडं, तो नीणियं, चउवीसाणुअोगद्दारमइयमहराणवस्सेव एगो विंदू ।
(सित्तरी चुण्णी पृ०२) अर्थात् बारहवें दृष्टिवाद अगके दूसरे अग्रायणीय पूर्वकी पंचमवस्तुके अन्तर्गत जो चौथा कर्मप्रकृतिप्राभृत है, और जिसमें कि चौबीस अनुयोगद्वार हैं, उनका यह प्रकरण एक बिन्दुमात्र है।
__इसी प्रकार दिन पर दिन विलुप्त या विच्छिन्न होते हुए महाकम्मपयडिपाहुडका आश्रय लेकर छक्खंडागम और कम्मपयडीकी रचना की गई है। इन दोनोंमें अन्तर यह है कि कम्मपयडीकी रचना गाथाओंमें हुई है, जबकि छक्खंडागमकी रचना गद्यसूत्रोंमें हुई है। कम्मपयडीके चूर्णिकार ग्रन्थके प्रारम्भमें लिखते है
दुस्समाबलेण खीयमाणमेहाउसद्धासंवेग-उज्जमारंभं अज्जकालियं साहुजणं अणुग्घेत्तुकामेण विच्छिन्नकम्मपयडिमहागंथत्थसंबोहणत्थं पारद्धं आयरिएणं तग्गुणणामगं कम्मपयडीसंगहणी णाम पगरणं । ( कम्मपयडी पत्र १)
- अर्थात् इस दुःषमा कालके बलसे दिन पर दिन क्षीण हो रही है बुद्धि, आयु, श्रद्धादिक जिनको ऐसे ऐदयुगीन साधुजनोंके अनुग्रहकी इच्छासे विच्छिन्न होते हुए कम्मपयडिनामक महाग्रन्थके अर्थ-संबोधनार्थ प्रस्तुत ग्रन्थके रचयिता आचार्यने यथार्थ गुणवाला यह कम्मपयडी संग्रहणी नामक प्रकरण रचा है।
षट्खंडागमकी रचनाका कारण बतलाने हुए धवलाटीकामें लिखा है कि
xxx महाकम्मपडिपाहुडस्स बोच्छेदो होहदि त्ति समुप्पएणबुद्धिणा पुणो दब्वपमाणाणुगममादि काऊण गंथरचणा कदा। (धवला पु० १ पृ०७१)
इस प्रकार हम देखते हैं कि दिन पर दिन होते हुए श्रुतविच्छेदको देखकर ही श्रुतरताकी दृष्टिसे उक्त ग्रन्थोंकी रचना की गई है।
षट्खंडागम, कम्मपयडी, सतक और सित्तरी, इन चारों ग्रन्थोंकी रचनाके साथ जब हम कसायपाहुडकी रचनाका मिलान करते हैं, तो इसमें हमें अनेक विशेषतऐं दृष्टिगोचर होती हैं
पहली विशेषता यह है कि जब षट्खडागम आदि ग्रन्थोंके प्रणेताओंको उक्त ग्रन्थोंकी उत्पत्तिके आधारभूत महाकम्मपयडिपाहुडका आंशिक ही ज्ञान प्राप्त था, तब कसायपाहुडकारको पांचवें पूर्वकी दशवीं वस्तुके तीसरे पेज्जदोसपाहुडका परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त था।
दूसरी विशेषता यह है कि कसायपाहुडकी रचना अति संक्षिप्त होते हुए भी एक सुसम्बद्ध क्रमको लिए है और ग्रन्थके प्रारम्भमें ही ग्रन्थ-गत अधिकारों के निर्देशके साथ प्रत्येक अधिकार-गत गाथाओंका भी उल्लेख किया गया है । पर यह वात हमें पट्खंडागमादि किसी भी अन्य ग्रन्थमें दृष्टिगोचर नहीं होती है।
__प्रन्थके प्रारम्भमें मंगलाचरणका और अन्तमें उपसंहारात्मक वाक्योंका अभाव भी कसायपाहुडकी एक विशेषता है । जवकि कम्मपयडी, सतक और सित्तरीकार आचार्य अपने अपने ग्रन्थोंके आदिमें मंगलाचरण कर अन्तमें यह स्पष्ट उल्लेख करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं