Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP

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Page 27
________________ जयपुर (सानिमा) तत्वचर्चाकी समीक्षाकी विषय-सूची विषय उत्तर प्रश्नको सीमासे बाह्म होनेसे अनावश्यक उत्तरपक्षकी उस स्थितिकी समीक्षा और उसकी पुष्टिका प्रयास भी उत्तरपक्षका ध्यकर्मोदयको प्रकृत कार्यक अनावश्यक प्रति निमित्त मानना छल पूर्ण है ३४ उत्तरपक्षका एक अन्य कथन और उसकी उत्तर प्रश्नके आवायके विपरीत ३४-३५ । समीक्षा निमित्तको अकिंचिस्कर सिद्ध करनेका प्रश्नोत्तर २ के वित्तीय वोरको समीक्षा १९६-२०४ प्रयत्न अयुक्त ३५-३६ द्वितीय दौरमें पूर्व पक्षकी स्थिति क्या जयभवलाका वचन बाहय कारणका ! द्वितीय दौरमें उत्तरपक्षके विविध कथन और निषेधक है? ३६-३७ | उनकी समीक्षा १९६-२०४ उक्त विवादपर सूक्ष्म विमर्श और सिद्धान्त- ४. प्रश्नोत्तर २ के तृतीय वोरको समीक्षा २०५-२३६ का निर्णय ३७-३८ | तृतीय दौर में पूर्वपनकी स्थिति २०५ उत्तरपक्षके विरोधी वक्तव्योंपर विचार -४० | तृतीय दौरमै उत्तरपक्षका प्रारम्भिक कथन उत्तरपक्षका अनुपयोगी वक्तव्य | और उसकी समीक्षा २०५ उत्तरपक्षका एक अन्य वक्तव्य और उसपर सत्तीय दौरमें प्रतिशंका ३ के आधारसे प्रकट विमर्श ४०-४१ उत्तरपक्षके विचारोंकी समीक्षा २०५-२३६ १. कथन १और उसकी समीक्षा २०६.२११ प्रकृतमें पूर्वपक्ष द्वारा उबृत्त 'सदकारणवन्नित्यम्' वचनका प्रयोजन २ कथन २ और उसकी समीक्षा २११-२१२ संख्या १ से १९ तक कथन और उनकी ३. कथन ३ और उसकी समीक्षा २१२-२१५ समीक्षा ४. कथन ४ और उसकी समीक्षा २१५ ४२-१८९ विषयका उपसंहार ५. कथन ५ और उसकी समीक्षा २१५-२१६ १८९ प्रश्नोत्तर २ को समीक्षा १९०-२३६ ६, कथन ६ और उसकी समीक्षा २१६-२१७ ७. कथन ७ और उसकी समीक्षा २१७-२२० १. प्रश्नोत्तर २ की सामान्य समीक्षा १९०-१९३ पूर्वपक्षके प्रश्नका उद्धरण ८, जयन ८ और उसकी समीक्षा २२०-२२१ ९. कथन ९ और उसकी समीक्षा २२१-२२३ उत्तर पक्षफे उत्तरका उद्धरण १९० १०. कथन १० और उसकी समीक्षा २२३-२२४ प्रश्न प्रस्तुत करने में पूर्वपक्षका अभिप्राय १९० ११. कथन ११और उसको समीक्षा २२४-२२५ जीवित शरीरकी क्रियांसे पूर्व पक्षका श्राशय १९० उत्तरपक्षक उत्तरपर विमर्श १२. कधन १२ और उसकी समीक्षा २२५-२२६ १. कान १३ और ससकी समीक्षा २२६-२३२ उत्तरपक्षके समक्ष एक विचारणीय प्रश्न १९०-१९१ १४. धन १४ और उसकी समीक्षा २३३ प्रकृत विषयके सम्बन्ध कतिपय आधारभूत १५. कथन १५ और उसकी समीक्षा २३४ सिद्धान्त १९१-११२ १६. कथन १६ और उसकी समीक्षा २३४-२३५ २. प्रश्नोत्तर २के प्रथम दोरको समीक्षा १९३-१९५ १७. कथन १७और उसकी समीक्षा २३५-२३६ उत्तर प्रश्नके आशयके प्रतिकूल १९३ प्रश्नोतर ३ की समीक्षा २३६-२७२ प्रकृत विषयमें उत्तरपक्षको आगमसे विपरीत | १. प्रश्नोत्तर ३ की सामान्य समीक्षा २३६-२४९ मान्यताएँ १९३-१९४ | पूर्वपक्षके प्रश्नका उद्धरण

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