Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाकी विषय-सूची १. शंका-समाधान १-७५
तृतीय दौर ८०-९३ प्रतिशंका ३
८०-८४ मंगलाचरण
प्रतिशंका ३ का समाधान
८५-९२ प्रथम दौर १.२
१. प्रणम-हितीय पानीसरोका संहार ८५ कांका १ और जगका समाधान
२. प्रतिशंका ३ के आधारसे विचार ८५ द्वितीय दौर ३-१४
३. शंका-समाधान ९३-१२८ प्रतिशंका २ प्रतिशंका का समाधान
प्रथम दौर ९३
शंका ३ और उसका समाधार तृतीय दौर १०-७५
द्वितीय र ९४-१०० प्रतिशंका ३
प्रतिशंका २
९४-९८ प्रतिशंका ३ का समाधान
प्रतिशंका २ का समाधान १. अध्यात्ममें रागादिका पौदगलिक बत
तुतीम और १०१-१९८ लानेका कारण
प्रतिशंका २. ममयलार गाथा ६८ को टीकाका
प्रतिशंका ३ का समाधान
११०-१२८ आशय
१. प्रथम-द्वितीय प्रश्नोत्तरोंका उपसंहार ११० ३. कमंदिय जीवकी अन्तरंग योग्यताका
२. प्रतिशंका ३ के आधारस विचार १११ सूचका है, जोत्र भावका कर्ता नहीं ४२
४, शंका-समाधान १२९-१५७ ४. प्रस्तुत प्रतिशंकामें उल्लिवित अन्य
प्रथम दौर १२९ उरणोंका स्पष्टीकरण शंका ४ और उसका समाधान
१२९ ५. सम्यक नियतिका स्वरूप निर्देश
द्वितीय और १३०-१२३ ६. प्रसंगसे प्रकृतोपयोगी नबोवा खुलासा ४१ प्रतिशंका २
१३०--१३२ ७, क्रन्किर्म आदिका विचार
प्रतिगंका २ का समाधान २. शंका-समाधान ७६-९२।
तृतीय दौर १३३-१५१
प्रतिशंका ३ प्रथम दौर ७६
१. प्रश्न चारका परिशिष्ट शंका २ और उसका समाधान ७६ | प्रतिशंका ३ का समाधान
१४४-१५७ द्वितीय दौर ७७-८०
१. लपसंहार
१४४ प्रतियंका २
१७-७८ २. प्रतिशंका ३ के आधारसे विवेचन १४४ प्रतिशंका २ का समाधान
२८-८० ३. प्रश्न चारके परिशिष्टका महापोह १५७