Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 1
Author(s): Vanshidhar Vyakaranacharya, Darbarilal Kothiya
Publisher: Lakshmibai Parmarthik Fund Bina MP
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पृष्ठक
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पुष्टि
जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चाकी समीक्षाकी विषय-सूची विषय ___पृष्ठांक |
विषय प्रश्नोत्तर १ को समीक्षा १-८९
३.दोनों निमितोंके लक्षणोंका मंगलाचरण
निर्धारण
१३-१४ १. प्रश्नोत्तर १ को सामान्य सभोक्षः १६ .. उप रा सम्मत दोनों प्रश्नोत्तर १ के आवश्यक अंशोंके उद्धारण १-२ निमित्तोंके लक्षण सम्यक् नहीं है १४-१५ इन उसरणोंको यहाँ प्रस्तुत करनेका
५. पूर्व पक्ष द्वारा अभिहित दोनों निमित्तोंप्रयोजन
के लक्षण सम्यक है
१५ उत्तर प्रश्न से बाहर है
६. उक्तलक्षणोंके सम्यकपने और उत्तर अप्रासंगिक है
असम्यक् पनेको मागम द्वारा उत्तर अनावश्यक है मतैक्य के विषय
७. प्रकृत विषयका उपसंहार १८-१९ मतभेदके विषय
८. उत्तरपक्षका संभावित भय और उपर्यक्ल विवेचनके आधारपर दो विचार
उसका निराकरण गीय बातें
९.निमित्तोंका कार्य में प्रवेश संभव समीक्षा लिखने हेतु
क्यों नहीं? उत्तरपक्ष द्वारा अपने उत्तरमें विपरीत
१०. निमित्तोंका कार्यमें प्रवेश अनापरिस्थतियोंका निर्माण
वश्यक क्यों?
२०-२१ उत्तरपक्ष का पूर्वपक्षपर उलटा आरोप ७-९
११. कर्ताका लक्षण
२१-२२ २. प्रश्नोत्तर १ के प्रथम वौरकी समीक्षा ५-११ | १२. यहाँ योग्यतासे वस्तकी नित्य उपासमयसार गाथा ८१ को अर्थमें उत्तरपक्ष की भूल ९ दान शक्ति ही अभिप्रेत है २२-२३ प्रश्नके उत्तरमें उक्त गाथामोंकी अनुपयोगिता ९ । १३. कार्योत्पत्तिके विषय में उत्तरपक्षका उपस गाथाएँ उत्तरपक्ष की मान्यताके
एक अन्य दृष्टिकोण और उसका विपरीत हैं
निराकरण प्रश्नके उत्तरमें अन्य प्रमाण भी अनुपयोगी हैं १० । १४. उत्तरपक्ष के दृष्टिकोणका अन्य उक्त प्रमाण भी उत्तरपक्ष की मान्यता के
प्रकारसे निराकरण
२७-२९ विपरीत प्रयोजन सिद्ध करते हैं १०-११ । द्वितीय भागकी समीक्षा ३. प्रश्नोत्तर १ के द्वितीय दौरकी समीक्षा ११-३२ तृतीय भागकी समीक्षा
३०-३१ द्वितीय दौरमें पूर्वपश्नकी स्थिति ११-१२ | | चतुर्थ भागको समीक्षा उत्तरपक्ष द्वारा पूर्वपक्षके विषयका पाँच
पंचम भागकी समीक्षा भागोंमें विभाजन
४-प्रश्नोसर १ के तृतीय चौरकी समीक्षा ३६-१८९ प्रथम भागकी समीक्षा
१२-२९ १. उत्तरपक्षका कथन
१२ | नृतीय दौर में पूर्वपक्षको स्थिति २. समीक्षा
१२-१३ | तृतीय दौरमै उत्तरपशकी स्थिति ३२-३३