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प्रवचन-२६ आजीविका चल, उतना ही पुणिया कमाता था। इसमें भी प्रतिदिन एक अतिथि को वह घर पर निमन्त्रित करके उसे भोजन करवाता था। एक दिन पति उपवास करता था, एक दिन पत्नी उपवास करती थी। स्वेच्छा से करते थे। दोनों प्रसन्नता से जीवन व्यतीत करते थे। कभी भी दुःख की शिकायत नहीं। कभी भी सुखों की याचना नहीं। पुणिया धनवान नहीं था, गुणवान अवश्य था । भगवान महावीर ने स्वयं उस पुणिया की प्रशंसा की थी। पुणिया में अनेक 'सत्' थे, अनेक गुण थे इसलिए वह सद्गृहस्थ था। बुद्धिमता भी गुणवान बनने में है। गुणवान ही मेरी राय में बुद्धिमान है। गुणवान बने रहने में निपुणता.....बुद्धिमत्ता होनी भी अति आवश्यक है। आप लोगों को बुद्धिमान मानकर ही यो सारी बातें कर रहा हूँ, समझे न? हाँ कहो या मना करो :
आप गृहस्थ ही हैं या सद्गृहस्थ, आप स्वयं निर्णय कर सकें, इसलिए मैं कुछ प्रश्न पूछता हूँ, आप 'हाँ' या 'नहीं' में प्रत्युत्तर देना। यदि 'हाँ' का प्रत्युत्तर हो तो आप सद्गृहस्थ हैं ऐसा मानना, और 'नहीं' का प्रत्युत्तर हो तो मात्र गृहस्थ समझना अपने आपको। __ पहला प्रश्न : क्या आप कुल परंपरा से चला आता व्यापार या नौकरी आदि व्यवसाय करते हैं?
दूसरा प्रश्न : आपका व्यापार या नौकरी वगैरह व्यवसाय अनिंद्य है न? तीसरा प्रश्न : आपका व्यवसाय आपकी संपत्ति के अनुरूप है न? काल के अनुरूप है न? देश-नगर के अनरूप है न?
चौथा प्रश्न : आप अपने व्यवसाय में नाप-तोल वगैरह शुद्ध करते हैं न? आपका लोगों के साथ व्यवहार प्रामाणिक है न? न्याययुक्त है न? __यदि आपका प्रत्युत्तर 'हाँ' में है तो आप सद्गृहस्थ हैं। आप में सामान्य गृहस्थधर्म का पालन है। यह आप निश्चित रूप से मान सकते हैं, निःशंक रूप से मान सकते हैं | आपका व्यवसाय इस प्रकार का है तो आपको किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो सकता। लक्ष्य के साथ-साथ धर्म का संबंध :
सभा में से : व्यापार करना, नौकरी करना, यह धर्म कैसे? महाराजश्री : क्रिया के साथ धर्म-अधर्म का संबंध मत जोड़ो। दृष्टि क्या
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