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भारतीय संवतों का इतिहास
वर्ष को १२ महीनों में वांटा गया है । चन्द्रमान में २५ से ३१ तथा सूर्यमान में २६ दिन एक माह में हो सकते हैं । किन्हीं पंचांगों में ३०, २६, ३१ आदि माह के दिनों की संख्या रहती है । तिथियों तथा दिनों का समूह मास होता है १२ मास एक वर्ष बनाते हैं । सूर्य मासों में कभी-कभी वर्ष में एक माह संक्रान्तिरहित होता है व कभी-कभी एक माह में दो संक्रान्तियां होती है ।
बड़े वर्ष के अवयव
कुछ माह के समूह को ऋतु कहा जाता है । ये मास से है । आरम्भ में जाड़ा, गर्मी व वर्षा तीन ही ऋतुओं को इसके पश्चात् चार, पर फिर हिन्दू पंचांग में छ: ऋतुओं का लगा । "विश्व के विभिन्न हिस्सों में ऋतुयें प्रथक प्रथक रहीं । उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में मात्र वर्षा व शुष्क मौसम ही होते हैं । मिश्र में तीन ऋतुयें मानी गयीं, लेकिन यूनान के उत्तरी प्रदेश में चार ऋतुयें थोड़े-थोड़े अन्तर वाली होती. हैं । "3 हिन्दी पंचांगों में दो-दो माह की छः ऋतुओं की व्यवस्था है : शैशिर, वासन्तिक, ग्रीष्म, वर्षा, शरद व हेमन्त । ऋतु निर्धारण का सम्बन्ध सौर्य पद्धति पर आधारित रहता है । चन्द्र पद्धति पर ऋतुओं का निर्धारण उचित नहीं है ।
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गिना जाता था । उल्लेख किया जाने
सौर्य वर्ष की लम्बाई के सम्बन्ध में मतभेद है, विभिन्न साक्ष्यों से सौर्य वर्ष के दिनों की संख्या भिन्न-भिन्न उपलब्ध होती है । ५०० ए० डी० में सूर्य सिद्धान्त के अनुसार वर्ष की लम्बाई ३६५.२५८७५६ दिन दी गयी । आधुनिक सूर्य सिद्धान्त के अनुसार यह ३६५.२४२१६६ दिन है । इस प्रकार इसमें
.०१६५६ दिन का अन्तर है । यह त्रुटि गहन अध्ययन के अभाव के कारण हो सकती है । प्रतिवर्ष ०.०१६५६ दिन का अन्तर रहता है जो १४०० वर्ष में २३.२ दिन का हो जाता है । एक सौर्य वर्ष में १२ माह होते हैं । चन्द्रमान में वर्ष के दिनों की संख्या ३५४ रहती है । चन्द्रमान ३० वर्षीय चक्र है जिसमें प्रत्येक ३ वर्ष बाद लौंद का वर्ष होता है अर्थात् लौंद के वर्ष में दिनों की संख्या ३५५ दिन रहती है । " ब्राह्मण ग्रंथों में वर्ष को प्रजापति कहा गया है यह प्रजाओं का पालन करता है । वायु पुराण के अनुसार वर्ष चार प्रकार का है :
१. 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनका', वोल्यूम - तृतीय, टोक्यो, १६६७, पृ० ५६६ । २. पं० भगवद् दत्त, 'भारत वर्ष का वृहद इतिहास', नई दिल्ली, १९५०पृ० १५५ ।
३. 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनका', वोल्यूम तृतीय, टोकयो, १६६७, पृ० १५५ ४. पं० भगवः दत्त, 'भारत वर्ष का वृहद् इतिहास', नई दिल्ली, १९५०, पृ० १५५ ।