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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
गया ।... जूलियस
इस वर्ष मान से २६ वर्ष में करीब २६ दिन का अन्तर पड़ सीजर के समय वह अन्तर ६० दिन का हो गया, जिससे उसने ईस्वी सन् पूर्व ४६ को ४५५ दिन का वर्ष मानकर वह अन्तर मिटा दिया ।"" इसी प्रकार का अन्तराल इस्लाम कलैण्डर में भी आता जा रहा है और कोई आश्चर्य नहीं जब इस्लाम कलैण्डर का वर्ष अपनी कम लम्बाई के कारण दूसरे सम्वतों से पृथक पड़ जाये और उसकी अन्तर्राष्ट्रीय उपयोगिता खत्म होने लगे, क्योंकि जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सौर कलैण्डर को माना जायेगा व इस्लाम कलैण्डर मात्र चन्द्रीय होगा तो जो समय दूसरे कलैण्डरों द्वारा १०० वर्ष की अवधि गिनी जायेगी वह इस्लाम कलैण्डर द्वारा १०३ वर्ष गिना जायेगा । यदि किसी व्यक्ति की आयु १०० वर्ष है तब इस्लामिक कलेण्डर उसकी आयु १०३ वर्ष बतायेगा । यह समस्या जन्म-मृत्यु अथवा अन्य किसी भी घटना के तिथि अंकन में भी आ सकती है। जब तक दूसरे कलैण्डर किसी वर्तमान वर्ष में अमुक घटना की गणना करेंगे तब तक इस्लाम कलेण्डर का वर्ष बदल जायेगा और उसके अनुसार वह घटना अगले वर्ष में गिनी जायेगी जबकि अधिकांश सम्वतों का आधार सौर वर्ष होगा तब चन्द्रीय वर्ष कुछ अटपटा व हास्यास्पद सा महसूस होगा ।
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भारत में अनेक शासकों को जो राजकीय कार्यों के लिए इस्लामिक कलैण्डर का प्रयोग करते थे, वित्तीय कार्यों को पूरा करने के लिए फसली पंचांगों को ग्रहण करना पड़ा । चन्द्रीय वर्ष होने के कारण सौर वर्ष से वह छोटा रहता था, जिससे किसानों को अधिक बार लगान चुकाना पड़ता था, साथ ही प्रति वर्ष एक माह उसी ऋतु में नहीं पड़ता था, जिससे लगान वसूली के लिए इस्लामिक कलैण्डर का कोई माह तय किया जा सके । अतः शाहजहां अकबर व अन्य दूसरे प्रान्तीय राजाओं द्वारा हिज्रा वर्ष के स्थान पर फसली पंचांगों को ग्रहण करना पड़ा ।
बहाई सम्बत्
बहाई कलैण्डर बाब द्वारा दिया गया तथा बहा उल्लाह द्वारा सत्यापित किया गया । बहा उल्लाह के नाम पर ही इस सम्वत् को बहाई सम्वत् कहा जाता है | बहाई सम्वत् का प्रचलन बहाई सम्प्रदाय में है । यह सम्प्रदाय अपने धार्मिक उत्सवों के लिए इसका प्रयोग करता है । " बहाई सम्वत् का आरम्भ
१. पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ० १६५ ।
२. जोहन फरेबी, "ऑल थिंग्स मेड न्यू", नई दिल्ली, ति० अनु०, पृ० २८० ॥