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विभिन्न सम्वतों का पारस्परिक सम्बन्ध व वर्तमान अवस्था
१७६ (४) संवत् २०२० में दृष्य गणित से कार्तिक ही क्षय और कार्तिक ही
अधिक मास है । स्थल गणित में आश्विन अधिक और मार्गशीर्ष
क्षय आता है। शताब्दी पंचांग का छोटा रूप भी प्रकाशित होता है जो १० वर्षीय
पंचांग है।
चक्रधर जोशी ज्योतिष के गढ़वाली विद्वान हैं। इनके पंचांग का नाम महीधर है। हिमाचल के पण्डित मुकन्द बल्लभ के पंचांग का नाम मातंग पंचांग है । यह पंचांग पंजाब व हिमाचल में प्रचलित है। दिवाकर पंचांग पण्डित देवीदयाल जी का है। यह जालन्धर से निकलता है।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से प्रचलित पंचांग तथा अधिक मान्यता प्राप्त विश्व विजय पंचांग है जिसको पं० हरदेव शर्मा त्रिवेदी निकालते हैं। इसका गणित आधार सोलन (शिमला) का है। इस पंचांग की विशिष्टता यह है कि इसमें राजनीतिक वार्षिक घटना-चक के सम्बन्ध में भी भविष्यवाणियां दी जाती हैं। जिनको जानने के लिये जनसाधारण अधिक उत्सुक रहता है। गणित भी विस्तार से दिया जाता है । ग्रहों की चालों का भी उल्लेख रहता है जो अन्य पंचांगों में नहीं मिलता । अतः पाश्चात्य पद्धति में विश्वास रखने वाले तथा इंगलिश पंचांगों का प्रयोग करने वाले जो भारतीय पंचांग में भी रुचि रखते हैं इसका प्रयोग करते हैं। इसकी गणना जयपुर की वेधशाला के आधार पर की जाती है।
दिल्ली से प्रकाशित पंचांग राजधानी पंचांग है । इसके गणितकर्ता प्रेमपाल कौशिक हैं । इस पंचांग की विशिष्टतायें इस प्रकार हैं : (१) श्री राजधानी पंचांग का गणित भारत की राजधानी दिल्ली के
उत्तर अक्षांश २८/३८ व ग्रीनविच से पूर्व रेखांश ७७/१४ के आधार पर किया गया है। तिथि से पूर्व वार व नक्षत्रों के संयोग से बचने
वाले आनन्दादि योग दिये गये हैं। (२) घट्यादि दिनमान दिल्ली का है। ६० में से घटाने पर शेष रात्रिमान
होगा। दिन व रात्रिमान का आठवां भाग एक चौ० मुहुर्त होता है।
प्रत्येक स्थान का दिनमान न्यूनाधिक होता है। (३) तारीखें क्रमशः राष्ट्रीयमिति, प्रविष्ठा, मुस्लिम और अंग्रेजी दी गयी
है। प्रविष्ठा सौर तारीख को ही बंगला तारीख कहते हैं ।
१. "श्री राजधानी पंचांगम", गणितकर्ता कौशल किशोर कौशिक, श्री
राजधानी पंचांग कार्यालय दिल्ली, शक १९१०, ई० १९८८, प्राक्कथन ।