Book Title: Bharatiya Samvato Ka Itihas
Author(s): Aparna Sharma
Publisher: S S Publishers

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Page 219
________________ भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण... २०५ धार्मिक अधिकार व नियम भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हैं व विभिन्न हिन्दू सम्प्रदायों में भिन्न हैं । कोई भी एक सामान्य नियम पूरे भारत के लिए इस सम्बन्ध में बना पाना बहत कठिन है। सम्भवतः यही कारण रहा कि धार्मिक क्षेत्र में राष्ट्रीय पंचांग को कोई महत्व नहीं मिल पाया । अपूर्व कुमार का तो विश्वास है कि यदि समिति पंचांग को वैज्ञानिक नागरिक कलेण्डर तक ही रहने देते तब अधिक उचित होता । "कलण्डर के मुख्य दो उद्देश्य, धार्मिक व तिथि क्रम हैं । कलण्डर सुधार के सम्बन्ध में हुए आन्दोलन इन दोनों उद्देश्यों के बीच तालमेल नहीं बैठा पाये। इस आन्दोलनों ने लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचायी। कलैण्डर सुधार समिति अधिक सफल होती, यदि इसको एक समान तथा वैज्ञानिक नागरिक कलैण्डर बनाने तक ही सीमित रखा जाता, लेकिन सुधारकों ने इस तरह से चलने के स्थान पर धार्मिक भावनाओं को वैज्ञानिक खगोलशास्त्र से जोड़ने का प्रयास किया जिसमें उन्हें असफलता हाथ लगी।"२ अपूर्व कुमार की यह आलोचना उचित नहीं है । समिति द्वारा धार्मिक उद्देश्यों को लेकर चलना उचित ही था। भारत में धार्मिक विविधता के कारण ही इतने सम्वतों ने जन्म लिया। बगैर इस तथ्य को समाहित किये कोई भी पंचांग राष्ट्रीय एकता लाने में समर्थ नहीं हो सकता है, न ही प्रजा का आकर्षण पा सकता है, बल्कि अधिक उचित होता, यदि समिति द्वारा राष्ट्रीय पंचांग निर्माण के लिए धार्मिक संस्थाओं व धर्म नेताओं का भी सहयोग लिया जाता। इससे धार्मिक क्षेत्र में प्रचलित पंचांगों की त्रुटियों को भी सुधारा जा सकता था । (इसका उल्लेख इसी मध्याय में राष्ट्रीय पंचांग की आलोचना के संदर्भ में आगे किया जायेगा।) समिति की तीन बैठकों में कुछ सुझाव तय किये गये तथा उनकी सिफारिश भारत सरकार से पंचांग निर्माण के संदर्भ में की गयी। ये प्रस्ताव रखे गये कि प्रयोग के रूप में सम्पूर्ण भारत के लिए पांच वर्ष का राष्ट्रीय कलण्डर बनाया जाये, जिसमें तिथि, दिनांक, दिन, मास तथा चन्द्र-दिवसों को तथा नक्षत्रों को दर्शाया जाये । भारतीय ग्रहों के दैनिक अध्ययन तथा गति सम्बन्धित एक क्रमिक पत्रिका संकलित करने का प्रयास किया जाये। किसी उचित स्थान पर एक राष्ट्रीय वेधशाला स्थापित की जाये, जिसमें आधुनिक यन्त्र तथा साधन १. "रिपोर्ट ऑफ द कलण्डर रिफोर्म कमेटी", १९५५, नई दिल्ली, पृ० १०१। २. अपूर्व कुमार चक्रवर्ती, "ओरिजन एण्ड डवेलपमेन्ट ऑफ इण्डियन कलैण्डरीकल साइंस", कलकत्ता, १६७५, पृ० ४।

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