________________
भारतीय संवतों का इतिहास
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग के लिए विभिन्न व्यक्तियों तथा सम्प्रदायों से प्राप्त होने वाले सुझावों में कुछ कलि, कुछ विक्रम व कुछ शक संवत् को राष्ट्रीय पंचांग के रूप में अपना लेने के सन्दर्भ में थे। इनमें विचारकों का एक वर्ग ऐसा भी था जिसने इन प्राचीन संवतों के स्थान पर सर्वथा नयी पद्धति का सुझाव राष्ट्रीय पंचांग के लिए दिया । ( इस सन्दर्भ में कुछ उदाहरण निष्कर्ष में दिये जायेंगे) पंचांग बनाते समय इन सुझावों पर ध्यान नहीं दिया गया तथा संवत् का नाम शक संवत् व महीनों के नाम चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ जो पूर्व प्रचलित थे, ग्रहण कर लिये गये । इन सब बातों ने लोगों को भ्रमित किया तथा राष्ट्रीय संवत् पूर्व प्रचलित शक संवत् ही समझा जाता रहा ।
२१२
भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय संवत् का आरंभ किसी भी लोकप्रिय राष्ट्रीय घटना से जोड़ने का प्रयास नहीं किया गया है जैसाकि स्वतंत्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस अथवा किसी महान् पुरुष की जन्म शताब्दी आदि । यदि इस प्रकार का प्रयास होता तब संभव है कि उस महत्वपूर्ण घटना को जानने व उसके महत्व को समझने के साथ ही राष्ट्रीय संवत् के महत्व को भी जन-मानस सहज ही समझ जाता । तथा इसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा लोगों में उत्पन्न होती ।
शक संवत् को "भारतीय राष्ट्रीय" संवत् के रूप में ग्रहण किया गया है तथा उसका नाम राष्ट्रीय संवत् के रूप में भी शक ही रखा गया है जिससे इसके पूर्व प्रचलित शक संवत् होने का भ्रम उत्पन्न होता है ।
राष्ट्रीय पंचांग को छापते समय उस पर नाम तो राष्ट्रीय पंचांग लिखा जाता है, परन्तु यह नहीं लिखा जाता कि वर्तमान प्रचलित वर्ण राष्ट्रीय संवत् का कौन सा वर्ष है । शकाब्द का ही वर्ष लिखा होता है । इससे यही विदित होता है कि भारत सरकार द्वारा नये पंचांग व गणना पद्धति का तो निर्माण किया गया, लेकिन उसे स्पष्ट रूप में एक संवत् का नाम नहीं दिया गया है ।
इन भूलों के साथ ही भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पंचांग के साथ और भी कुछ ऐसी लापरवाहियां रहीं जो इसे राष्ट्रीय नहीं बनने दे रही हैं । राष्ट्रीय पंचांग का यह स्वरूप देखने में पूर्व प्रचलित सम्वत् का ही प्रारूप लगता है क्योंकि इसके साथ पूर्व प्रचलित शक सम्वत् का ही वर्ष व महीनों के नाम लिखे हैं। इसमें हुए परिवर्तन का कोई स्पष्ट चिह्न नहीं दिखाई देता जिससे किसी भी मनुष्य जिसने कलैण्डर सुधार समिति की रिपोर्ट का व नियमों का अध्ययन नहीं किया है, के लिए यह पूर्व प्रचलित शक सम्वत् ही है ।