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भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण... २१३
सरकार द्वारा व्यापक रूप में पंचांगों का निर्माण व वितरण नहीं किया जा रहा है।
भारतीय नागरिकों को बाल्यावस्था से उच्च-स्तरीय शिक्षा तक कहीं भी राष्ट्रीय संवत् का बोध नहीं कराया जाता।
उपरोक्त उल्लिखित कुछ तथ्य ऐसे रहे जो भारत को एक राष्ट्रीय संवत् में विकसित करने में बाधक थे । जबकि भारत की वर्तमान अवस्था में राष्ट्रीय एकता बनाये रखने व भारत राष्ट्र के इतिहास के क्रमबद्ध अध्ययन, पुनः लेखन के लिये राष्ट्रीय संवत् महत्वपूर्ण है।
अब सर्वप्रथम हम यह समझें कि एक राष्ट्रीय संवत किसी भी राष्ट्र की एकता में किस प्रकार सहायक हो सकता है। जैसे कि एक मनुष्य की निजी पहचान के लिए उसका अपना एक विशेष नाम है, कुछ विशेष गुण हैं, अपना स्वभाव है पहनावा है, ठीक इसी प्रकार एक राष्ट्र की पहचान के लिए राष्ट्र के कुछ विशेष चिन्ह होते हैं। अपने पृथक-पृथक स्वार्थों में मनुष्यों में चाहे जो भी भेदभाव हो, लेकिन उन चिन्हों के प्रति उन भावनाओं के प्रति राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक स्वयं को समान रूप से उत्तरदायी महसूस करता है । इन्हीं कुछ तत्वों के प्रति मनुष्यों की भावनायें एक राष्ट्रीयता को जन्म देती हैं तथा राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करती हैं। भारत जैसे विभिन्न रीति-रिवाजों, भाषाओं, अनेकों धर्म व सम्प्रदाय वाले राष्ट्र के लिए तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि कुछ ऐसे तत्वों का विकास हो जो राष्ट्र को एक सूत्र में वांधने में सहायक हों। भारत राष्ट्र के लिए एक ऐसे संवत की आवश्यकता है जो भारत में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम में समान रूप से प्रयुक्त हो सके, जिसमें दिए गए त्यौहार सम्पूर्ण राष्ट्र में राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाये जायें, जिसका प्रयोग भारतीय नागरिकों द्वारा दैनिक व्यवहार में किया जा सके ।
भारत में यह प्रवत्ति आदिकाल से रही है कि पृथक-पृथक क्षेत्रों में पृथक-पृथक सम्प्रदायों द्वारा पृथक-पृथक संवत प्रयोग किए गए । उत्तरी भारत में विक्रम संवत , बंगाल में बंगाली सन, कन्नौज में श्री हर्ष संवत , उत्तरी मालाबार में कोल्लम संवत्, पश्चिमी दक्षिण में चालुक्य संवत आदि संवतों का प्रयोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों में किया गया । हिन्दुओं द्वारा सृष्टि, श्रीकृष्ण, कलि, शक व विक्रम संवतों का प्रयोग, बौद्धों द्वारा बुद्ध निर्वाण संवत का प्रयोग, जैनियों द्वारा महावीर निर्वाण संवत् का प्रयोग तथा मुस्लिम सम्प्रदाय द्वारा हिज्री • संवत् का प्रयोग किया गया। इनमें अनेक संवतों का प्रयोग आज भी यथावत हो रहा है । इतना ही नहीं एक ही संवत् शक संवत के वर्ष आरंभ के लिए