________________
निष्कर्ष
२१६
कारण थे जिन्होंने भारत में संवतों की इतनी बड़ी संख्या को जन्म दिया। इसके साथ ही कुछ ऐसे तत्व भी रहे जिन्होंने संवतों की संख्या को सीमित कर दिया । भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय पंचांग निकाला जो भारत में वर्तमान समय में प्रचलित सभी संवतों का सम्मिलित पंचांग है तथा इसके साथ शक संवत् का नाम लिया जाता है। यद्यपि इसका स्वरूप प्राचीन संवत् की गणना पद्धति से एकदम भिन्न है ।
भारत में एक सर्वमान्य संवत् की समस्या निरन्तर बनी रही है जिसने मुख्य रूप से इतिहास-लेखन को प्रभावित किया है। आज भी भारत में अनेक साम्प्रदायिक य क्षेत्रीय सवतों का प्रचलन है। राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक, धार्मिक व इतिहास-लेखन के कार्यों के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र में एक राष्ट्रीय संवत् ग्रहण किया जाना अनिवार्य है अन्यथा भारतीय इतिहास में तिथिक्रम की जो समस्या आज तक बनी हुई है वह आगे भी विद्यमान रहेगी।
भारत सरकार द्वारा अपनाये गये शक संवत को जिसके पंचांग को राष्ट्रीय पंचांग नाम दिया गया है तथा संवत् के नाम में न कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसमें कुछ सुधारों की आवश्यकता है। अत: राष्ट्रीय संवत् को अधिक लोकप्रिय, सर्वग्राह्य तथा बहु-उपयोगी बनाने के सन्दर्भ में कुछ सुधार इस प्रकार किए जा सकते हैं : १. राष्ट्रीय संवत् की पद्धति को इतना वैज्ञानिक व उपयोगी बनाया जाये
कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसको महत्व प्राप्त हो सके तथा अब तक प्रचलित संवतों में रही त्रुटियां इसमें न रहें। २. सरकार द्वारा व्यापक रूप में पंचांगों को छापा व वितरित किया जाये
व सिक्कों, रुपयों पर राष्ट्रीय संवत् अंकित किया जाये। ३. प्राथमिक स्तर व माध्यमिक स्तर पर बच्चों को राष्ट्रीय पंचांग की
शिक्षा दी जाये । प्राथमिक शिक्षण से ही अन्य दूसरे संवतों के साथ बालकों को राष्ट्रीय संवत का बोध कराये जाने से उनमें राष्ट्र-प्रेम की भावना तथा राष्ट्र-चिन्ह के रूप में संवत् के प्रति अनुराग उत्पन्न
होगा। ४. माध्यमिक स्तर के शिक्षण समय तक के बालकों का मानसिक विकास
इस स्तर का हो जाता है कि वे पंचांगों के आधारभूत तत्वों व चंद्रमान तथा सौरमान को समझ सकें। अत: माध्यमिक स्तर पर इन बातों को बताये जाने से राष्ट्रीय पंचांग में ग्रहण किये गये तत्वों की जानकारी