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निष्कर्ष
२२१ में ईसाई संवत् भी अपनी जन्म-भूमि तक ही सीमित था तथा राष्ट्रीय था। इसके अनुयायियों ने इसे अन्तर्राष्ट्रीय बनाया। हमारा प्रयास ऐसा हो कि भारतीय राष्ट्रीय संवत् की पद्धति इतनी वैज्ञानिक व व्यावहारिक बनायी जाये कि यह अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा कर सके व विश्व के दूसरे राष्ट्र भी उसकी पद्धति को ग्रहण करें। गणना की जो सूक्ष्म से सक्ष्म कमियां अन्य दूसरे संवतों में है इसमें वे भी न रहें । तथा यह अपनी व्यावहारिता व वैज्ञानिकता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयुक्त हो सके।
भारतीय संवत् की स्थापना व वैज्ञानिक पंचांग निर्माण का महत्व जितना खगोलशास्त्र व ज्योतिष शास्त्र के लिए है उससे भी अधिक इतिहास के लिए है इस संदर्भ में अभी गणना की और सूक्ष्म खोजों व निश्चित इकाइयों की स्थापना की आवश्यकता है। यद्यपि पंचांग-निर्माण-कार्य एक खगोलशास्त्रीय कार्य है। ऐतिहासिक नहीं, फिर भी यह बात सही है कि इतिहास की आधारशिला संवत् ही है व भारतीय इतिहास की यह जटिल समस्या रही है तथा इतिहास-लेखन के लिए एक संवत् की आवश्यकता है। अतः एक इतिहासकार जिसे खगोलशास्त्र का अच्छा ज्ञान है, भी पंचांग निर्माण व संवत् की स्थापना में सहयोग कर सकता है। साथ ही यदि खगोलशास्त्री को भी इतिहास का ज्ञान हो तब कलैण्डर अच्छा बन पड़ेगा, इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते ।
प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन के लिए साहित्य, अभिलेखों, पुरातत्वीय सामग्री व विदेशी यात्रियों के विवरण आदि साक्ष्यों का सहारा लिया जाता है। भारत में संवत् आरम्भ करने की परम्परा अति प्राचीन समय से रही है तथा ये विभिन्न संवत् भी भारतीय इतिहास के स्रोत हैं। भिन्न-भिन्न संवत् ने इतिहासदृष्टि को प्रभावित किया है। कुछ संवत् जिनका आरम्भ-काल काफी प्राचीन ठहराया गया है भारतीय इतिहास की प्राचीनता व संस्कृति के अनन्तकाल पुरानी होने के साक्षी हैं।
सृष्टि संवत्, कृण्ण संवत्, युधिष्ठिर संवत्, कलियुग संवत् हिन्दू धर्म व प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़े हैं। इनके आरम्भ की तिथियां पांच हजार वर्ष प्राचीन मानी गयी हैं । अत: ये भारतीय संस्कृति की प्राचीनता के द्योतक हैं । कृष्ण संवत् का संबंध भगवान कृष्ण से है, जो हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा भगवान माने जाते हैं तथा आज भी हिन्दू धर्म व दर्शन का एक बड़ा स्रोत है । युधिष्ठिर संवत् व कलियुग संवत् का सम्बन्ध महाभारत युद्ध की घटना से है । यह युद्ध अधर्म पर विजय तथा संस्कृति के पुनः स्थापन का प्रतीक है और इसका ऐतिहासिक महत्व भी उतना ही है जितना धार्मिक । बुद्ध-निर्वाण व महावीर