________________
२०४
भारतीय संवतों का इतिहास
उपरोक्त लिखित दिन, माह व वर्ष तीन प्राकृतिक दृश्यों को राष्ट्रीय पंचांग में भी ग्रहण किया गया है। इनके समय में थोड़ा परिवर्तन हुआ है तथा रातदिन का विभाजन २४ घण्टों में किया गया है। प्रत्येक घण्टा, मिनट, संकेण्ड तथा इससे भी अधिक सूक्ष्म इकाई आज प्रयोग की जा रही है । यह पाश्चात्य कलण्डर व्यवस्था का प्रभाव है।
राष्ट्रीय पंचांग के धार्मिक नियम को अधिकाधिक विस्तृत करने का प्रयास किया गया । भारतीय धार्मिक विविधता के कारण पूरे राष्ट्र के लिए सामान्य नियम बनाना असम्भव है । अतः धार्मिक उत्सवों व उनसे सम्बन्धित छुट्टियों को तय करने के लिए कुछ पूरे राष्ट्र के लिए सामान्य नियम बनाये गये । जैसा कि कुछ बड़े त्यौहार जो कि चक्र सौर पंचांग पर आधारित है, उनके लिए छुट्टियों की व्यवस्था है । इसके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि विभिन्न सम्प्रदायों के लिए अलग धार्मिक छुट्टियों की व्यवस्था है। इस सम्बन्ध में क्षेत्रीयता का भी ध्यान रखा गया है। जिस क्षेत्र में कोई त्यौहार अधिक मान्य है वहां उसके लिए अधिक छुट्टियों की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त भारतीय सरकारी छुट्टियों की भी पृथक से व्यवस्था की गयी है, जो कि पूरे राष्ट्र के लिए समान रूप में मान्य है। इस श्रेणी में सर्वप्रथम छुट्टी "नये वर्ष आरम्भ" की, २२ मार्च की है । इसके अलावा स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, कुछ महापुरुषों के जन्म दिवस तथा राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने वाले अनेक बड़े त्यौहारों की छट्टियां सम्मिलित हैं।
धार्मिक क्षेत्र में राष्ट्रीय कलैण्डर में अपनाये गये नियम व व्यवस्थायें वास्तव में सराहनीय हैं। भारत जैसे धार्मिक विविधता वाले राष्ट्र में इसी प्रकार की व्यवस्था की जा सकती है। इस संदर्भ में विद्वानों ने अनेक बड़े त्योहारों के परस्पर सामंजस्य द्वारा साम्प्रदायिक सद्भाव जुटाने का भी प्रयास किया है। किन्तु सरकारी छुट्टियों के संदर्भ में यदि उन्हें राष्ट्रीय त्योहार व राष्ट्रीय छुट्टियों का नाम दिया जाता, तब सम्भवत: अधिक उचित होता। शायद इस बात को मानने में हमारे किसी भी सम्प्रदाय को कठिनाई नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी में वे ही छुट्टियाँ हैं जो पूरे राष्ट्र के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं । चाहे वे किसी राष्ट्रीय नेता से सम्बन्धित हैं, चाहे राष्ट्रीय पंचांग से सम्बन्धित हैं अथवा महात्मा बुद्ध जैसे नेता के जन्म दिन से सम्बन्धित हैं, जिनका महत्व हमारे सांस्कृतिक जीवन में आज भी उतना ही है जितना २ सहस्त्राब्दियों पहले था, तथा वे न केवल भारत के लिए वरन् विश्व भर में मानवता के पोषण के लिए महत्व की हैं । कलंण्डर निर्माण के क्षेत्र में प्रयोग हुए