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विभिन्न सम्वतों का पारस्परिक सम्बन्ध व वर्तमान अवस्था
वर्तमान समय में न केवल भारतीय सम्वतों में बल्कि दूसरे देशों में प्रचलित सम्वतों में भी समय के विभाजन की बहुत सी एक जैसी ही इकाईयां ग्रहण कर ली गयी हैं। चाहे वे गणना की किसी भी पद्धति (चन्द्र, सौर, चन्द्रसौर अथवा नक्षत्र पद्धतियां) पर आधारित हों। ये तत्व सभी में प्रयोग हो रहे हैं।
वर्ष, लौंद का वर्ष वर्तमान समय में प्रचलित सभी सम्वतों में विद्यमान है। चन्द्र व सौर पद्धतियों के कारण इसके समयावधि में अन्तर रहते हुए भी वर्ष अधिकांश सम्वतों में समय-विभाजन की एक मुख्य इकाई है। वर्ष का विभाजन १२ माहों में किया जाता है (बहाई सम्वत् इसका अपवाद है, इसमें वर्ष का विभाजन १६ महीनों में किया गया है)।
महीने से छोटी इकाई पाख (पखवाड़ा अथवा पक्ष) है जो महीने का १/२ भाग या १५ दिन की अवधि का होता है परन्तु अव पाश्चात्य प्रभाव से सप्ताह भी ग्रहण कर लिया गया है जो माह का १/४ भाग अथवा ७ दिन का है। "सप्ताह को आरम्भ में बाजार-समयावधि के रूप में ग्रहण किया गया। आरम्भ में सप्ताह की अवधि पृथक-पृथक थी। पश्चिमी अफ्रीका में ४ दिन, मध्य एशिया में ५ दिन, असीरिया में ६ दिन, मिश्र में १० दिन की यह समयावधि ग्रहण की गयी।"१ "आरम्भ में बेबीलोन में ८ दिन का सप्ताह माना गया लेकिन ८ की संख्या को शुभ न मानकर यह संख्या ७ रखी गयी जो सम्भवतः सात ग्रहों से सन्बन्धित है।
पक्ष व सप्ताह से छोटी इकाई दिन है। सौर गणना वाले पंचांगों में यह दिनांक व हिन्दू पंचांगों में तिथि कही जाती है। सौर गणना में दिन की अवधि २४ घण्टे मानी गयी है तथा इसकी गणना १, २, ४, ५, ६ आदि ३१ तक लगातार होती है । परन्तु हिन्दू पंचांगों में लॊद के माह की व्यवस्था करने के लिये तिथियों को घटाया बढ़ाया जाता है अर्थात् एक दिनांक (Date) दोहराया नहीं जाता जबकि एक ही तिथि लगातार दो दिन भी रह सकती है तथा एक दिन में दो तिथियां भी पूरी हो सकती हैं। (इसे तिथि का लोप कहते
१. "इन्साईक्लोपीडिया ब्रिटेनिका", वोल्यूम ३, टोक्यो, १९६७, पृ० ५६६ । २. वही।