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भारतीय संवतों का इतिहास
दिन के उपभागों के लिए अब लगभग सभी भारतीय सम्वतों में तथा पंचांगों के निर्माण के लिए घण्टा, मिनट, सैकेण्ड आदि इकाईयों को अपना लिया गया है। साथ ही तिथियों का अंकन भी पंचांगों पर रहता है। दिन की अवधि आधीरात से आधीरात तक मानी जाती है । ग्रीनविच स्टैण्डर्ड टाइम के अनुसार घड़ियों व पंचांगों में दिनांक को बदला जाता है। राष्ट्रीय पंचांग में भी इसी को ग्रहण किया गया है । "इस पंचांग का यावत् गणित उस भारतीय मध्य रेखा बिन्दु के लिए किया गया है, जो ग्रीनविच से पूर्व-रेखांश ८२°३० एवं उत्तरअक्षांश २३°११ (उज्जयिनी के अक्षांश) पर स्थित है एवं इस पंचांग में सर्वत्र तिथ्यादि के समय भारतीय मानक समय (इण्डियन स्टैण्डर्ड टाइम) के अनुसार दिये गये हैं, जो उक्त भारतीय मध्य रेखा बिन्दु का स्थानिक मध्यकाल होता है।" "यह (इण्डियन स्टैण्डर्ड टाइम) ग्रीनविच मध्यम काल या विश्व-काल से ५ घण्टा ३० मिनट आगे रहता है। पंचांग-गणित भारतीय मध्य रेखा बिन्दु का होने से वह समस्त भारतोपयोगी हो सकता है।"२ घड़ियों में भी समय उसी के आधार पर निश्चित किया जाता है। "भारत वर्ष का स्टैन्डर्ड टाइम पूर्व घं० मि० ५.३० दिया है अर्थात् ८२ अंश पूर्व रेखांश का यह समय है जो समस्त भारतवर्ष में प्रचलित है। वही टाइम आजकल भारतवर्ष भर की घड़ियां बतलाती हैं।"
उपरोक्त उल्लिखित गणना पद्धति के कुछ ऐसे तथ्य हैं जो अब शनैः-शन: भारतीय पंचांगों व विश्व के दूसरे देशों के पंचांगों में एक जैसे ही ग्रहण कर लिये हैं। आधुनिक समय में पंचांगों का निर्माण करते समय दो उद्देश्यों का ध्यान रखा जाता है। प्रथम तो पंचांग जिस सम्प्रदाय व धर्म से सम्बन्धित है, उसकी धामिक आवश्यकताओं को पूरा करे। दूसरा वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित हो रही पद्धति से भी पंचांग का सम्बन्ध बना रहे तथा वह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकों की दैनिक व्यवहार की आवश्यकताओं को प्ररा कर सके । सम्बतों के पंचांगों के तथ्यों का इस प्रकार आदान-प्रदान हो रहा है तथा उनमें समान गणना पद्धति विकसित हो रही है।
१. भारत सरकार, "राष्ट्रीय पंचांग", दिल्ली, १९८८, भूमिका । २. वही। ३. बी.एल० ठाकुर, "ज्योतिष शिक्षा", द्वितीय रुण्ड, भाग-१, वाराणसी,
१९७०, पृ० ४।