________________
ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
१६५ इलाही संवत आरंभ की तिथि दी है। लेकिन एल० डी० स्वासी पिल्ले यी' व रोबर्ट सीवैल ने १४ फरवरी १५५६ की तिथि यानी है।
इलाही संवत का आरंभ अनेक महत्वपूर्ण उद्देश्यों को लेकर किया गया था। सर्वप्रथम अकबर को हिज्रा (पलायन) शब्द पसन्द नहीं था। अत: हिज्रा के स्थान पर इलाही शब्द ग्रहण किया गया। परन्तु प्रारंभ में अकबर उन धमन्धि लोगों को, जो इस संवत (हिज्रा) तथा इस्लाम धर्म की अभिन्नता में विश्वास करते थे, नाराज नहीं करना चाहता था। इस संवत को अपनाने के संबंध में कुछ कारण ये भी माने जा सकते हैं-प्रथम, हिज्री संवत का त्रुटिपूर्ण होना, दूसरा सभी धर्मों, सम्प्रदायों व संपूर्ण राज्य में अकबर की एकरूपता लाने की इच्छा, अकबर द्वारा अपनी व अपने साम्राज्य की विशिष्टता प्रदर्शित करने की भावना, चौथे अकबर द्वारा स्थापित नवनिर्मित धर्म इलाही धर्म को अधिक लोकप्रिय बनाना भी संभवत: इस नये संवत की स्थापना का उद्देश्य था।
नया संवत ग्रहण करना इसीलिए. महत्वपूर्ण था "क्योंकि अभी तक जो हिजरी वर्ष का राज पंचांग प्रचलित था, उससे जनसाधारण और सरकार को बड़ी असुविधा होती थी। हिजरी वर्ष चन्द्र वर्ष है और सौर वर्ष से १०-११ दिन छोटा होता है । यह फसलों के समय से भी मेल नहीं खाता । इससे वर्ष में १०-११ दिन कम रह जाने से २६ सौर वर्षों के चक्र में ३० हिजरी वर्ष होते हैं। फलस्वरूप किसानों को २६ वर्ष के बजाय ३० वर्ष की मालगुजारी देनी पड़ती थी। 3 अतः इस व्यवस्था को समाप्त कर अकबर किसानों को इस अनीति से बचाना चाहता था। इसके अतिरिक्त उस समय भारत में अनेक संवत हिजरी, पारसी, विक्रमी, शक, फसली आदि प्रचलित थे जो गणना में असुविधा उत्पन्न करते थे। अतः अकबर ने सब राजकीय कार्यों के लिए सौर गणना पर आधारित पारसी वर्ष को ग्रहण किया। ____ अपने समय के अन्य प्रचलित संवतों के मुकाबले इलाही संवत् का महत्व इस कारण अधिक है क्योंकि यह जिन उद्देश्यों को लेकर आरंभ किया गया उनमें इसने काफी सफलता पायी । संभवतः यह पहला भारतीय संवत था जो
१. एल०डी० स्वामी पिल्लयी, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", मद्रास, १९११,
प०४५ । २. रोबर्ट सीवैल, "इण्डियन कलैण्डर", लन्दन, १८९६, पृ० ४६ । ३. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, "अकबर महान्", (अनुवादक भगवान दास
गुप्ता), भाग-१, आगरा, १९६७, पृ० ३१८ ।