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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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कनिंघम ने कुछ साक्ष्यों के आधार पर यह कहा कि ६६२ जबकि हिज्रा के सहस्त्र वर्ष अपने अन्त पर आने लगे तब अकबर ने इलाही संवत् का सूत्रपात किया। उसके एक दरवारी ने स्पष्ट लिखा है कि बड़े से बड़े राजाओं का संवत् भी १००० वर्ष से अधिक नहीं चलता, इसके लिए उसने कुछ संवतों का उदा. हरण दिया जो अपने आरंभ के १००० वर्ष बाद समाप्त हो गए।
इलाही संवत् का आरंभ १५८४ ई० से किया गया। परन्तु पूर्व व्यतीत वर्षों की गणना कर इसके आरंभ की तिथि १५५६ में ही निश्चित की गयी जो अकबर के राज्यारोहण की तिथि थी। "बादशाह अकबर ने हिजरी सन् को मिटाकर तारीख-ए-इलाही नाम का नया सन् चलाया जिसका पहला वर्षे बादशाह की गद्दीनशीनी का वर्ष था । वास्तव में यह सन् बादशाह अकबर के राज्य वर्ष २६वें अर्थात हिजरी सन् ६६२ में आरंभ हुआ अथवा ई० संवत् १५८४ से चला परंतु पूर्व के वर्षों का हिसाब लगाकर इसका प्रारम्भ अकबर के गद्दीनशीनी के वर्ष से मान लिया गया। अकबर की गद्दीनशीनी तारीख २ रवी उस्सानी हिजरी संवत् ६६३ (ई० संवत् १५५६ तारीख ११ मार्च =विक्रम संवत् १६१२ चैत्र कृष्ण अमावस्या) से, जिस दिन कि ईरानियों के वर्ष का पहला महीना फरवरदीन लगा, माना गया है।"
"राज्याभिषेक के २८ दिन बाद अर्थात् बुधवार २८ रबी-उस-सानी ६६३ हिजरी को नौरोजा था। पिछले तथा बुद्धिमान लोग इस बात पर सहमत हैं कि यदि किसी शुभ घटना से नया संवत् आरंभ किया जावे तो उसका आरंभ लगभग नौरोजा से होना चाहिये। यह घटना कुछ आगे या पीछे हुई हो, इसका विचार न किया जाये। अकबर का राज्याभिषेक नौरोजा से २५ दिन पूर्व हुआ था। यद्यपि नये संवत् का आरंभ नौरोजा से ही मान लिया गया। अतः इलाही संवत् का आरम्भ नौरोजा से ही होता है।"3
कनिघम, ओझा तथा अब्बुल फजल के उपरोक्त उल्लिखित कथनों का तात्पर्य यही है कि इलाही संवत् का प्रचलन १५८४ में किया गया, लेकिन
१. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६,
पृ० ८४। २. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर,
१६१८, पृ० १६३ । ३. अब्बुल फजल, "अकबरनामा" (हिन्दी अनुवादक मथुरा लाल शर्मा),
ग्वालियर, पृ० १५२ ।