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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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बर्मी कोमन सम्वत् का आरम्भकर्ता कौन था, किस घटना के सम्बन्ध में सम्वत् आरंभ किया गया तथा इसके आरम्भ के क्या उद्देश्य थे, इस सम्बन्ध में पता नहीं चलता। इस सम्वत की आरम्भ तिथि के सम्बन्ध में कनिंघम ने मात्र इतना ही कहा है : "इस सम्वत् की आरंभ तिथि शनिवार २१ मार्च, ६३८ ईस्वी है । जो जूलियन गणना के अनुसार २१ मार्च, ६३८ ई० तथा ग्रिगेरियन के अनुसार २४ मार्च, ६३८ ईस्वी है।"
इस सम्वत् की गणना पद्धति भारतीय गणना पद्धति के समान है । "इसमें वर्ष की लम्बाई सूर्य सिद्धान्त के आधार पर ३६५.८७५६४८ दिन है । सूर्य वर्ष की गणना हिन्दुओं के समान ही की जाती है । १ वर्ष में १२ चन्द्रमास क्रमशः २६ व ३० दिन के होते हैं । १६ वर्षीय चक्र में ७ वर्ष निश्चित रूप से लौंद के होते हैं।"२ कनिंघम ने इस संवत के वर्ष का लौंद का वर्ष ज्ञात करने की पद्धति भी बतायी है। "कोई वर्ष लौंद का होगा अथवा नहीं यह जानने के लिए तब तक व्यतीत वर्षों की कुल संख्या को १६ से भाग देने पर यदि शेष २, ५, ७, १०, १३, १८ हों तब वह वर्ष लोंद का होगा।"3 कनिंघम के वर्णन से इतना तो स्पष्ट है कि उस संवत् का प्रयोग अभिलेख अंकन के लिए हुआ। जैसा कि पीछे दिये गये एक उद्धरण में महाबोधि मन्दिर से प्राप्त लेख का वर्णन है तथा इसी के आधार पर कनिंघम ने बर्मी कोमन संवत् के भारत में प्रचलन की संभावना प्रकट की है।
बर्मी कोमन संवत् के संदर्भ में एक मात्र वर्णन कनिंघम का ही मिलता है। भारतीय संवत् से सम्बन्धित अन्यत्र किसी पुस्तक, लेख अथवा विद्वान् का मत प्राप्त नहीं हुआ।
बर्मी कोमन संवत् का नाम इस बात का द्योतक है कि यह मुख्य रूप से बर्मा से संबन्धित है । या तो संवत् का आरंभ भारत में हुआ व शीघ्र ही इसका प्रचलन भारत से खत्म होकर बर्मा में अधिक समय तक रहा अथवा इसका आरंभ ही बर्मा में हुआ तथा किसी राजनैतिक संधि के परिणामस्वरूप किसी समय भारत में इसका अभिलेखों पर अंकन किया गया। जैसा कि सैल्यूसीडियन संवत् के सम्बन्ध में समझा जाता है।
१. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी १६७६,
पृ०७१। २. वही, पृ० ७१। ३. वही, पृ० ७२ ।