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भारतीय संवतों का इतिहास
इसे केवल सिंह संवत के नाम से लिखा है तथा आरम्भ होने का बर्ष भी १११३ ई० अथवा १०३५ शक संवत दिया है।'
विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर शिव सिंह संवत के संबंध में इतना ही कहा जा सकता है कि ई० सन १११३ के करीब इसका आरंभ हुआ। आरंभकर्ता कौन था अथवा किस घटना के संबंध में इस संवत को चलाया गया इस पर निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता ।
शिव सिंह संवत की ऐतिहासिक उपयोगिता इस बात से विदित है कि इसका प्रयोग लेखों के लिए किया गया जो इसके आरम्भकर्ता और आरंभ तिथि के विषय में अनुमान लगाने में विद्वानों की मदद करता है। क्योंकि यह संवत मात्र क्षेत्रीय ही रहा और एक वंश विशेष से संबंधित था । अतः वंश समाप्ति के साथ ही संवत भी लुप्त हो गया।
शाहूर सन् "शाहर सन्" को "सूर सन" और "अरबी सन्" भी कहते हैं। इस सन का मारंभकर्ता कौन था निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । यह संभावना की जाती है कि देहली का सुल्तान मोहम्मद तुगलक इस संवत का आरंभकर्ता रहा होगा। इस संवत् को चलाने का कारण शायद नियत महीनों में रबी व खरीफ की फसलों का कर वसूलना था। अर्थात् यह भी फसली संवत के समान फसल के पकने के सन्दर्भ में ही चलाया गया था। अरबी भाषा में महीने को "शहर" कहा जाता है अतः अनुमान किया जाता है कि "शहर" का बहुवचन "शहूर" है और उसी से "शाहर" शब्द की उत्पत्ति हुई है। हिजरी सन् के चान्द्र मास इसमें सौर माने यये हैं जिसके सन् का वर्ष सौर के बराबर होता है। और इसमें "मौसम
और महीनों" का संबंध बना रहता है। इस सन् में ५६६-६०० मिलाने से ई० संवत और ६५६-५७ मिलाने से विक्रम संवत बनता है। इससे पता चलता है कि तारीख १ मुहर्रम हिजरी सन् ७४५ (ई० संवत १३४४ तारीख १५ मई= वि० संवत १४०१ ज्येष्ठ शुक्रवार) से (जबकि सूर्य मृगशिर नक्षत्र पर आया था), उसका प्रारंभ हुआ है ।"२ इसके वर्ष को "मृग साल" भी कहा जाता है क्योंकि इसका नया वर्ष सूर्य के मृगशिर नक्षत्र पर आने के दिन से बैठता है । इसमें
१. डी०एस० त्रिवेद, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", बम्बई, १९६३, पृ० ४३ ।। २. हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८,
पृ० १६१ ।