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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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इन अभिलेखों के आधार पर श्री ओझा ने शक सम्वत् व चालुक्य विक्रम सम्वत् के बीच ६६७ वर्ष का अन्तर, विक्रम सम्वत् व चालुक्य विक्रम सम्वत् के बीच ११३२ वर्षों का अन्तर तथा ईस्वी सम्वत् और चालुक्य विक्रम सम्वत् के बीच १०७५-७६ वर्षों का अन्तर बताया है ।' अर्थात् चालुक्य विक्रम सम्वत् में १०७५ जोड़ने से वर्तमान ई० सम्वत् बनता है और वर्तमान ई० सम्वत, में १०७५ घटाने से चालुक्य विक्रम सम्वत् का वर्तमान चालू वर्ष बनता है । प्रचलित रहा
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दक्षिणी पश्चिमी भारत में चालुक्य विक्रम सम्वत् अन्य दूसरे क्षेत्रीय सम्वत् की भांति यह सम्वत् भी लगभग एक सदी बाद लुप्त हो गया । "यह सम्वत् अनुमानतः १०० वर्ष चलकर मस्त हो गया । इसका सबसे पिछला लेख चालुक्य विक्रम सम्वत् १४ का मिला है ।" चालुक्यों के पतन के साथ ही उनके सम्वत् की समाप्ति से यही समझा जा सकता है कि इस सम्बत का प्रचलन किसी ठोस गणना पद्धति पर आधारित नहीं था । पूर्वं प्रचलित पंचांगों को ही नया नाम देने का प्रयास किया गया था अतः वंश की समाप्ति व सम्वत् के राजकीय संरक्षण के अन्त के साथ ही जन-साधारण ने इसे त्याग दिया तथा पूर्व प्रचलित शक व विक्रम सम्वतों को ही ग्रहण कर लिया ।
चालुक्य राजा विक्रमादित्य इस सम्वत् का आरम्भकर्ता था । यह निर्विवाद रूप से स्वीकार किया गया है। " अपने राज्याभिषेक की स्मृति में उसने चालुक्य विक्रम सम्वत् नामक एक नया सम्वत् चलाया ।
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चालुक्य वंश का इतिहास जानने में इस सम्वत की काफी उपयोगिता है क्योंकि इस वंश के अभिलेखों पर चालुक्य बिक्रम सम्वत् व दक्षिण में प्रचलित ब्रहस्पति गणना के वर्ष अंकित हैं जिससे ब्रहस्पति गणना के वर्षों के साथ एक विक्रम व ईसाई सम्वत् के वर्षों की गणना कर चालुक्य वंश से संबंधित घटनाओं की तिथियां निश्चित की जा सकती हैं ।
१. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९८१, पृ० १५२ ।
२. "रिपोर्ट ऑफ द कलैन्डर रिफोर्म कमेटी, दिल्ली, १९५५, पृ० २५८ । ३. हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर,
१६१८,
पृ० १५२ ।
४. के०ए० नीलकंठ शास्त्री, "दक्षिण भारत का इतिहास", ( अनुवादक वीरेन्द्र वर्मा), पटना, १६७२, पृ० १५६ ।