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भारतीय संवतों का इतिहास
काल", "विक्रम काल" और "विक्रम वर्ष" नामों का प्रयोग किया गया है । यह सम्वत् सोलंकी राजा विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के वर्ष से चला हुआ माना जाता है। __ इस सम्वत के आरम्भ के लिए १०७६ ई० की तिथि मान्य है। एलेग्जेण्डर कनिंघम का इस संबंध में विचार है : "उसके सम्बत् का आरम्भ उसके सिंहासनारोहण शक संवत् १९८ अर्थात १०७६ ई० से होता है ।" इस प्रकार १४ फरवरी, १०७६ ई० अथवा फाल्गुन शुदि पंचमी ६६८ शक सम्वत् चालुक्य विक्रम सम्वत् के आरम्भ की निश्चित तिथि ज्ञात है। अनेक विद्वानों ने इसी तिथि का समर्थन किया है। सी० मोबल डफ०२, डा० डी०एस० त्रिवेद, रोबर्ट सीवैल तथा स्वामी पिल्लयी ने १०७६ ई० की तिथि को ही माना है।
चालुक्य विक्रम सम्वत् के आरम्भ का मुख्य कारण सोलंकी राजा विक्रमादित्य छठे की अपने नाम से एक नया सम्वत् चलाने तथा पूर्व प्रचलित शक सम्वत् को मिटाने की इच्छा मानी जा सकती है। अतः पूर्व प्रचलित विक्रम सम्बत् से इसको भिन्न दिखाने के लिए इसके नाम के साथ चालुक्य जोड़ दिया गया।
चालुक्य वंश के अभिलेखों में इस सम्वत् का प्रयोग हुआ है । ओझा ने इस सम्बन्ध में दो अभिलेखों कुर्त कोटि से प्राप्त अभिलेख व येवर गांव से प्राप्त अभिलेख का वर्णन किया है। प्रथम-कुतं कोटि से प्राप्त लेख में चालुक्य विक्रम वर्ष सप्तमी दुंदुभि संवत्सर पौष शुक्ल ३ रविवार उत्तरायण संक्रान्ति और व्यतिपात लिखा है। दक्षिण ब्रहस्पत्य गणना के अनुसार दुंदुभि संवत्सर शक सम्वत् १००४ था। दूसरा येवूर गांव से प्राप्त अभिलेख है ।
१. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक आफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १६७६,
पृ० ७५। २. सी० मोबल डफ, "द क्रोनोलॉजी ऑफ इण्डिया", भाग-१, वाराणसी,
१९७५, पृ० १२६-३० । ३. डी०एस० त्रिवेद, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", बम्बई, १९६३, १० ३८ । ४. रोबर्ट सीवल, "द इण्डियन कलेण्डर", लन्दन, १८६६, १० ४६ । ५. एल० डी० स्वामी पिल्लयी, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", मद्रास, १६११,
पृ०४५। ६. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर,
१९१८, पृ० १८१-८21