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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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और उसी का अनुसरण कर कनिंघम ने भी गुप्त वंश के विनाश से गुप्त संवत् का आरम्भ माना तथा इसी धारणा को लेकर शायद कनिंघम ने लक्ष्मण सेन संवत् का आरम्भ भी उसके आरम्भकर्ता की मृत्यु से मान लिया। जबकि किसी भी दुःखद घटना से संवत् आरम्भ की परम्परा भारत में नहीं थी । नये संवत् का आरम्भ उसी घटना से किया जाता था जिसको लोग स्मरण रखने में खुशी महसूस करें तथा जो हर्षं व आनन्द से सम्बन्धित हो । अतः भारतीय परम्पराओं के अनुसार राज्यारोहण की घटना ही संवत् आरम्भ के लिए उचित लगती है । अल्बेरुनी द्वारा वर्णित अनेक संवतों के सन्दर्भ में इस प्रकार की गलत विचारधाराओं का खण्डन उनके सम्बन्ध में उपलब्ध अनेक प्रमाणित स्रोतों के आधार पर किया जा चुका है । अल्बेरुनी बहुत कम समय ही भारत में रहा अतः यहां प्रचलित संवतों व परम्पराओं के विषय में उसको गहराई से जानकारी प्राप्त हो सकी होगी इस पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता । अतः लक्ष्मण सेन संवत् का आरम्भ भी लक्ष्मण सेन के राज्यारोहण के समय से हुआ होगा न कि मृत्यु के समय से ।
इस संवत् का प्रचलन तिरहुत व मिथिला प्रान्तों में रहा । शक व विक्रम संवतों के साथ ही लक्ष्मण सेन संवत् का प्रयोग भी होता रहा है । अठारहवीं शताब्दी के अन्त व १६वीं के आरम्भ के समय के लेखकों ने लक्ष्मण सेन संवत के प्रचलन क्षेत्र के संबंध में लगभग समान विचार व्यक्त किये हैं । ओझाजी का विचार है - "यह संवत् पहले बंगाल, बिहार और मिथिला में प्रचलित था । और अब मिथिला में उसका कुछ-कुछ प्रचार है जहाँ इसका आरम्भ माघ शुक्ल १ से माना जाता है ।"" सीवैल का विचार है : "यह संवत् तिरहुत व मिथिला में प्रचलित है और सदैव शक व विक्रम संवत के साथ उसका प्रयोग होता है ।' कनिंघम व शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं ।
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१. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला" अजमेर, १६१८. पृ० १८६ |
२. रोबर्ट सीवल, "दि इण्डियन कलंण्डर ", लन्दन, १८९६, पृ० ४६ । ३. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १६७६,
पृ० ७६ ।
४. श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित, "भारतीय ज्योतिष", (हिन्दी अनुवादक - शिवनाथ झारखण्डी), लखनऊ, १६६३, पृ० ४६६ ।