________________
ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
१४७
अथवा भारतीय सम्वतों से सम्बन्धित पुस्तकों में इस सम्वत् के सम्बन्ध में वर्णन नहीं है।
भौमाकर सम्वत् का प्रयोग अभिलेखों के अंकन के लिये किया गया इसकी पुष्टि डी०सी० सरकार ने की है तथा स्वयं अभिलेख के आधार पर उन्होने भौमाकर वंश तथा उसके द्वारा चलाये गये सम्वत के अस्तित्व का अनुमान किया व इसी के आधार पर हवीं सदी ई० के प्रथम अर्द्ध के मध्य को इस सम्वत् का आरम्भ समय बताया है।
भौमाकर सम्वत् के सम्बन्ध में अधिक अभिलेखों व साक्ष्यों का उपलब्ध न होना यही सिद्ध करता है कि अपने आरम्भ के कुछ समय बाद ही यह प्रचलन से बाहर हो गया अर्थात् अन्य दूसरे क्षेत्रीय सम्वतों के समान ही इसका प्रचलन भी अपने आरम्भकर्ताओं के सत्ता में रहने तक ही रहा। आरम्भकर्ताओं की शासन समाप्ति के साथ ही सम्वत् भी प्रचलन से बाहर हो गया।
कोल्लम सम्वत् ___ इस सम्वत् को संस्कृत लेखों में "कोलव सम्वत" (वर्ष) और तमिल में "कोल्लम आंडु" (कोल्लम-पश्चिमी और, आंडु-वर्ष) अर्थात् पश्चिमी भारत का सम्वत् आदि नामों से जाना जाता है। कोल्लम सम्वत् के सम्बन्ध में एक रोचक कथा है कि कोल्लम (किलोन) जो कि एक प्राचीन नगर व बन्दरगाह है तथा दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है कि स्थापना के समय से इस सम्वत् का प्रचलन हुआ। ईस्वी सम्वत् की ७वीं शताब्दी के नेस्टोरिअन् पादरी जेसुजबस ने क्किलोन का उल्लेख किया है । ईस्वी सम्वत् ८५१ के अरब लेखक ने "कोल्लम मल्ल" नाम से इसका उल्लेख किया है। बनल का विचार है कि इस सम्वत् का प्रारम्भ ईस्वी सम्वत् ८२४ के सितम्बर से हुआ। ऐसा माना जाता है कि यह कोल्लम की स्थापना की यादगार में चला है । बनल के इस विचार की आलोचना करते हुए श्री ओझा ने लिखा है : "कोल्लम शहर ई० सम्वत् ८२४ से बहुत पुराना है और ईस्वी सम्वत् की ७वीं शताब्दी का लेखक उसका उल्लेख करता है । इसलिए ई० सम्वत् ८२४ में उसका बसाया जाना और उसकी यादगार में इस सम्वत् का चलाया जाना माना नहीं जा सकता।"१ कोल्लम सम्वत् के आरम्भ के सम्बन्ध में श्री ओझा का कथन है : "तुहफतुलमजाहिद्दीन"
१. हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८,
पृ० १७६ ।