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भारतीय संवतों का इतिहास
नामक पुस्तक का कर्ता उसका हिज्री सन् २०० में मुसलमान होना बतलाता है। अरब के किनारे के जफहार नामक स्थान में एक कब्र है जिसको मालाबार के अब्दुर्रहमान सामिरी की कब्र बतलाते हैं और ऐसा भी कहते हैं कि उस पर के लेख में चेरूमान का हिनी सन् २०२ में वहां पहुंचना और २१६ में मरना लिखा है । परन्तु मालाबार गजेटियर का कर्ता इन्नेस लिखता है कि उक्त लेख का होना कभी प्रमाणित नहीं हआ। मालाबार में तो यह प्रसिद्ध है कि चेरूमान् बौद्ध हो गया था। इसलिए चेरूमान के मुसलमान हो जाने की बात पर विश्वास नहीं होता और यदि ऐसा हुआ हो तो भी इस घटना से इस सम्वत् का चलना माना नहीं जा सकता क्योंकि कोई हिन्दू राजा मुसलमान हो जावे तो उसकी प्रजा और उसके कुटुम्बी उसे बहुत ही घणा की दृष्टि से देखेंगे और उसकी यादगार स्थिर करने की कभी चेष्टा न करेंगे।"१ कोल्लम सम्वत् के आरम्भ की घटना के सम्बन्ध में एक धारणा यह भी है कि शंकराचार्य के स्वर्गवास से यह सम्वत् चला । यदि शंकराचार्य का जन्म ईस्वी सम्वत् ७८८ (विक्रम सम्वत् ८४५= कलियुग सम्वत् ३८८६) में और देहांत ३८ वर्ष की अवस्था में माना जावे तब उनका देहान्त ईस्वी सम्वत् (७८८+३८)-८२६ ईस्वी में होना स्थिर होता है । यह समय कोल्लम सम्वत् के आरम्भ के करीब ही है । इस धारणा का मुख्य स्रोत मालाबार से प्रचलित जनश्रुति है। __ इस सम्वत् का प्रचलन भारत के पश्चिमी तटवर्ती प्रदेश में था। मालाबार, कोचीन तथा ट्रावकोर मुख्य रूप से प्रचलन क्षेत्र हैं। मालाबार के लोग इसको परशुराम का सम्वत् भी कहते हैं । कोल्लम सम्वत् के आरम्भ के लिए ८२५ ई० की तिथि ही स्वीकृत है। इसकी पुष्टि स्वामी पिल्लयो, रोबर्ट सीवैल आदि ने की है । कलैण्डर रिफोर्म कमेटी ने भी इसी तिथि को माना है। कोल्लम सम्वत् के दो प्रकार के वर्षों का प्रचलन है । उत्तरी मालाबार में १७ सितम्बर (सौर कन्यादि माह) से वर्ष आरम्भ होता है तथा दक्षिणी मालाबार में वर्ष का आरम्भ १७ अगस्त (सिंहादि माह) से वर्ष का आरम्भ होता है। इसके
१. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर,
१६१८, पृ. १७६ । २. एल०डी० स्वामी पिल्लयी, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", मद्रास, १९११,
पृ० ४३ । ३. रोबर्ट सीवैल, "द इण्डियन कलैण्डर", लन्दन, १८६६, पृ० ४५ । ४. "रिपोर्ट ऑफ द कलैण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० २५८ ।