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ऐतिहासिक घटनाओं के आरंभ होने वाले संवत्
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से कुछ वर्ष पूर्व की होनी चाहिए । यदि ऊपर के दोनों अनुमान ठीक हों तो गांगेय सम्वत् का आरम्भ ईस्वी सन ६६३-८७=५७६ से कुछ पूर्व अथात् ईस्वी सम्वत् ५७० के आसपास होना चाहिए।" __ इस सम्बत् की आरम्भ तिथि के सम्बन्ध में दी गयी तिथियों में शताब्दियों का अन्तराल है । जहां डा० त्रिवेद ४६७ ई० की तिथि गंगा सम्वत् के आरम्भ के लिए देते हैं वही सोमेश्वर शर्मा द्वारा ५०४ ईस्वी तथा ७४१, ७७२, ८७७ ईस्वी की तिथियां भी दी गयी हैं। इस अन्तराल को देखते हुए निश्चित रूप से यह बता पाना कि इतने से इतने समय में गंगा सम्वत् प्रचलन में था, कठिन कार्य
इस सम्वत् का प्रयोग अभिलेखों के अंकन के लिए किया गया यह विक्रमवधन का इन्द्रपुरा दानपत्र तथा गोविन्द वर्मन के इन्द्रापुरा दान पत्रों से स्पष्ट है।
___ गंगा सम्वत् के विषय में अनुमान किया जाता है कि "यह सम्वत् ३५० वर्ष से कुछ समय तक प्रचलित रहकर अस्त हो गया।"२ गंगा सम्वत् के शीघ्र समाप्त हो जाने के लिए भी उन्हीं सामान्य कारणों को उत्तरदायी माना जा सकता है जो अन्य दूसरे क्षेत्रीय सम्वत् की समाप्ति के लिए उत्तरदायी रहे । गंगा सम्बत् में किसी नवीन गणना पद्धति के ग्रहण किये जाने व इसका राष्ट्रीय प्रसार होने के सम्बन्ध में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होते । अतः अपने आरम्भकर्ता के प्रभाव के अन्त के साथ ही सम्वत् भी लुप्त हो गया। यह सम्भव है कि गंगावंश के निजी इतिहास लेखन अथवा वंश से सम्बन्धित घटनाओं को अंकित करने के लिए इस सम्वत् का प्रयोग हुआ हो, परन्तु अन्य समकालिक राजवंशों अथवा राष्ट्रीय स्तर के लेखकों ने गंगा सम्वत् का प्रयोग किया, इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं होते । अत: यही माना जा सकता है कि इतिहास लेखन के लिए गंगा सम्वत् की उपयोगिता नगण्य ही थी।
यह कह पाना कठिन है कि गांगेय सम्वत् व गंगा सम्वत् एक ही थे अथवा पृथक-पृथक । क्योंकि गांगेय सम्वत् का उल्लेख श्री ओझा करते हैं लेकिन वे स्वयं ही इसके विषय में कोई निश्चित मत अथवा तिथि प्रस्तुत नहीं करते। वे लिखते हैं : "यह सम्वत् गंगावंश के किसी राजा ने चलाया होगा, परन्तु
१. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८,
पृ० १७६ । २. वही, पृ० १७६।