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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
नहीं और यह सम्वत् ग्रहण का कार्य किसी विशेष अवसर पर हुआ अथवा सहज रूप में ही अपना लिया गया इस सम्बन्ध में भी कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती ।
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ओझा, रोबर्ट सीवैल तथा कलैण्डर रिफोर्म कमेटी की रिपोर्ट में मागी सम्वत् को बंगाली सन् के समान बताया गया है जिसका अर्थ यही लगाना चाहिए कि यह गणना पद्धति व वर्ष आरम्भ के सन्दर्भ में बंगाली सन् का ही प्रतिरूप है ।
गंगा सम्वत्
गंगा वंश के द्वारा चलाये जाने के कारण यह गंगा सम्वत् के नाम से जाना जाता है । कहीं-कहीं इसका उल्लेख गांगेय सम्वत् के नाम से भी हुआ है । गंगा सम्वत् का प्रचलन भारत के दक्षिण के पूर्वी भाग में रहा ।'
अन्य दूसरे सम्वतों के समान ही गगा सम्वत् के आरम्भ के लिए अनेक तिथियां दी जाती हैं । इसके आरम्भ व अस्तित्व का अनुमान कुछ दानपत्रों के आधार पर लगाया जाता है । डा० त्रिवेद ने गंगा सम्वत् का आरम्भ ४६७ ई० या ४१६ शक सम्वत् से माना है । इस सम्बन्ध में शोभा राल ने ३४६ व ४१४ ई०, घोषा ने ४६६ ई०, मिराशी ने ४६८ ई०, सोमेश्वर शर्मा ने ५०४ ई ० ० तथा ७४१-७७२, ५७७ ई० आदि तिथियां दी हैं । डा० वी०वी० मिराशी ने इन्द्रा पुरा से प्राप्त विक्रम वर्धन तथा गोविन्द वर्मन के दो ताम्रपत्रों (जो दान पत्र हैं) के आधार पर गंगा सम्वत् की तिथि निश्चित की है । अन्ध्र प्रदेश के नलगोडा जिले के तुमाला गांव में दो दान पत्र प्राप्त हुये । वी० एन० शास्त्री ने उन्हें सर्व प्रथम प्रकाशित किया । इन लेखों से विष्णु कुन्डिन के विषय में नवीन जानकारियां प्राप्त हुयीं। वी०वी० मिराशी ने एक लेख में इन्हें विक्रम वर्धन का इन्द्रपुरा दान पत्र तथा गोविन्द वर्मन का इन्द्रपुरा दान पत्र नामों से सम्बोधित किया तथा इसके आधार पर गंगा सम्वत् की तिथि निश्चित करने का प्रयास किया । विष्णु कुण्डिन की अन्य तिथियों में इन्द्रपुरा की तिथियां विष्णु कुण्डिन के शासन काल से ५० वर्ष पुरानी है । जैन प्रमाणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि ये तिथियां जाली हैं । सम्भवतः वे शक सम्वत् की
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१. "रिपोर्ट ऑफ द कलैण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० २५८ । २. डी० एस० त्रिवेद, "इण्डियन क्रोनोलॉजी, बम्बई, १९६३, पृ० ३३ ।