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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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राजा वैरम सिंह के समय के उपलब्ध लेखों का उल्लेख किया है तथा निष्कर्ष दिया है कि "इन दोनों लेखों से पाया जाता है कि भट्टिक सम्वत् में ६८०.८१ मिलाने से विक्रम सम्वत् और ६२३ २४ मिलाने से ईस्वी सम्वत् आता है। अभी तक जैसलमेर राज्य के प्राचीन लेखो की खोज बिल्कुल नहीं हुई, जिमसे यह पाया नहीं जाता कि कब से कब तक इस सम्वत् का प्रचार रहा।
जैसलमेर ताम्रपत्र से इतना तो निश्चित है कि भट्रिक सम्बत् का प्रयोग अभिलेख अंकन के लिए हुआ। इसके अतिरिक्त और कुछ लेखों की भट्टिक सम्वत् का ही होने की सम्भावना मिराशी ने व्यक्त की है : ' इससे सम्बन्धित लेख राजपूताना के निकटवर्ती प्रदेश में पाये गये हैं-कोट अभिलेख ४० वर्ष, ताशाई लेख, अलवर राज्य वर्ष १८४, उदयपुर संग्रहालय अभिलेख वर्ष १८४ आदि लेखों को ओझा तथा भण्डारकर ने हर्ष सम्वत् का स्वीकार किया है परन्तु यह सम्भव है कि ये भी भट्टिक सम्वत् में ही रहे हों।"२ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि कम अथवा अधिक मात्रा में इस सम्वत् का प्रयोग अभिलेखों की तिथि अंकन के लिए तो अवश्य हुआ, परन्तु इसके अतिरिक्त अन्य किसी उद्देश्य, इतिहास लेखन, पंचांग निर्माण, साहित्य, धार्मिक, सामाजिक कृत्यों की पूर्ति मादि के लिए भी इसका प्रयोग हुआ अथवा नहीं यह पता नहीं चलता। फिर भी यह तो माना ही जा सकता है कि इसके आरम्भकर्ता द्वारा कुछ समय तक इसका प्रयोग राजकार्यों में किया गया होगा।
भट्टिक सम्वत् का प्रयोग कब से कब तक रहा इस सन्दर्भ में निश्चित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है । "भट्टिक सम्वत् के लेख १५वीं व १७वीं सदी में भी मिलते हैं, परन्तु इसका कोई साक्ष्य नहीं कि यह सम्वत् प्रारम्भिक काल में भी प्रचलित रहा होगा।"
१. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन
लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ० १७८ । २. वी०वी० मिराशी, 'द हर्ष एण्ड भट्टिक एरा', "आई०एच०क्यू.", वो.
२६, १९५३, पृ० १६५ । ३. वही।