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भारतीय संवतों का इतिहास
प्रथम लेख भट्टिक संवत् के आरम्भ की तिथि ६२४-२५ ई० तथा दूसरे लेख से आरम्भ की तिथि ६२३-२४ ई० आती है। इन दोनों लेखों से प्राप्त तिथियों में एक वर्ष का अन्तर है। जिसके सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि यह पूर्ण वर्ष व चाल वर्ष का अन्त र है जैसा कि बहुत से भारतीय संवतों के सन्दर्भ मे मिलता है। "इन लेखों का परिचय देते हुए तथा तिथि निश्चित करते हुए मजूमदार ने इसे हिज्रा सम्वत् बताया है, लेकिन यह असम्भव है, यह वास्तव में भट्टिक सम्वत् ही है।" मजूमदार अपने मत के समर्थन में अपने एक लेख में कहते हैं : "भट्टिक सम्वत् का आरम्भ निश्चित ज्ञात नहीं है। परन्तु यह हिज्री के लगभग निकट है तथा जैसलमेर जहां से इसके लेख मिले हैं वह उस स्थान के बहुत पास है जहां आठवीं सदी ई० में मुसलमानों ने अधिकार कर लिया था और सम्भव है यह हिज्रा सम्वत् ही विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हआ हो तथा सौर वर्ष में परिवर्तित कर दिया गया हो।"२ हिज्रा वर्ष पूर्ण रूप से चन्द्रीय है । अतः उसकी किसी भी सौर गणना वाले सम्वत् से समानता व्यर्थ है तथा इसी आधार पर मजूमदार के मत का खण्डन किया जाता है जबकि वे यह कहते हैं कि हिज्रा सम्वत् को सौर वर्ष में परिवर्तित कर लिया गया होगा। वी०वी० मिराशी ने मजमदार द्वारा भट्टिक सम्वत् को हिज्रा सम्वत् मानने के सन्दर्भ में दी गयी समस्त सम्भावनाओं का खण्डन करते हुए यही कहा कि यह भट्टिक सम्वत् है और यही उचित भी जान पड़ता है क्योंकि वी०वी० मिराशी ऐसे स्थानों पर भी इसके प्रचलन का उल्लेख करते हैं जहां मुस्लिम शासन नहीं था और जिन स्थानों पर हिज्री सम्वत् के प्रयोग की सम्भावना नहीं की जा सकती। साथ ही सम्वत् का पृथक नाम इसके पृथक आरम्भ व अस्तित्व का प्रतीक है। हिज्रा सम्वत् आज तक हिज्रा नाम से ही जाना जाता है। हर्ष सम्वत् भी बाद तक हर्ष सम्वत् नाम से ही चला । फिर इन दोनों में से किसी के लिए अन्य किसी नाम का प्रयोग हुआ हो, यह उचित नहीं लगता । अतः भट्टिक सम्वत् के सन्दर्भ में यही धारणा अधिक उचित जान पड़ती है कि भट्टिक वंश अथवा स्वयं भट्टिक नामधारी किसी शासक ने इसका आरम्भ किया, जिसका शासन क्षेत्र राजपूताना में था । श्री ओझा ने भी जैसलमेर से
१. वी०वी मिराशी, 'द हर्ष एण्ड भट्टिक एरा', "आई०एच०क्यू.", वो० २६,
१९५३, पृ० १६३ । २. आर०सी० मजूमदार, 'द हर्ष एरा', "आई०एच०क्यू०", वो० २७, १६५१,
पृ० १८७ ।