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भारतीय संवतों का इतिहास
नेपाल से भी इस संवत् से सम्बन्धित अभिलेख मिले हैं । हर्ष संवत् में अंकित अभिलेखों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है : (१) स्वयं हर्ष द्वारा अंकित कराये गये दो अभिलेख (५२८- २६ ) (२), नेपाल से प्राप्त ११ अभिलेख, (३) एक अभिलेख मगध के आदित्य सेन का, (४) दो प्रतिहार अभिलेख (सं० ५४२, ५४४), (५) चार अन्य अभिलेख |
इस प्रकार कुल २० अभिलेख हैं जिन पर अंकित तिथि को विद्वान् हर्ष संवत् की तिथि मानते हैं । " हर्ष के अपने अभिलेखों को छोड़कर केवल पांच अभिलेख हर्ष संवत् से सम्बन्धित माने जाते हैं । इनमें से हर्ष संवत् के सम्बन्ध में कोई भी अधिक नहीं बताता । इन पांच में से तीन हर्ष के शासन क्षेत्र में आते हैं । एक निश्चित है ( पंजाब में कहीं से ) पांचवां बुन्देलखण्ड के सीमावर्ती क्षेत्र का है।"
अभिलेखों में हर्ष संवत् के प्रयोग का प्रमाण तो इस संवत् में अंकित अभिलेखों से मिल जाता है किन्तु साहित्य अथवा इतिहास लेखन के लिये भी इस संवत् को अपनाया गया इस सम्बन्ध में साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं । इससे यही समझना चाहिये कि साहित्य लेखन में इसको ग्रहण नहीं किया गया । यह मात्र प्रशासनिक गणना ही रहा और राजकीय कार्यों तथा राजनैतिक घटनाओं के अंकन के लिये ही संवत् का प्रयोग हुआ जो कि अभिलेखों के रूप में अंकित की गयी ।
हर्ष संवत् के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि कुछ शताब्दियों बाद ही इसका प्रयोग समाप्त हो गया । हर्ष संवत् से सम्बन्धित कन्नौज नरेशों ताम्रपत्र हैं । "इन राजाओं का शासन काल ७५० ई० से १००० ई० तक था । इनमें पहला पत्र भोज देव के पुत्र महेन्द्रपाल देव का है । इस ताम्रपत्र की तिथि ३१५ जैसी लगती है जो हर्ष संवत् की ६२१ ई० बैठती है । दूसरा ताम्रपत्र महेन्द्रपाल के पोते विनायकपाल देव का है। इसकी तिथि ३८६ जैसी लगती है । इसके आधार पर तिथि ६६२ ई० बैठती है । इसके बाद कन्नोज को राठौरों ने जीत लिया और उन्होंने विक्रमादित्य संवत् वहां भी चला दिया । कनिघम
१. आर०सी० मजूमदार, 'हर्ष वर्धन ए क्रिटिकल स्टडी', 'द जर्नल ऑफ द बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी", वोल्यूम ६, १६२३, पृ० ३१०२५ ।
२. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६, पृ० ६४ ।